सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में ललन सिंह जेडीयू के वो नेता हैं जिनको लेकर राज्य में हालिया सियासी घमासान की शुरुआत हुई थी.एक महीने पहले बीजेपी ने दावा किया था कि ललन सिंह को लालू प्रसाद यादव के क़रीबी होने की वजह से जेडीयू के अध्यक्ष पद से हटाया गया है.ललन सिंह ने 29 दिसंबर 2023 को जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.जेडीयू की तरफ से दावा किया गया कि ललन सिंह अपनी मुंगेर लोकसभा सीट पर ध्यान देना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने अध्यक्ष पद को ख़ुद छोड़ा है.दिल्ली में हुई जिस बैठक में ललन सिंह ने इस्तीफ़ा दिया था उसके एक महीने के अंदर ही जेडीयू, बीजेपी के साथ चली गई है. सहयोगी बदलते ही अब ललन सिंह का निशाना भी बदल गया है.
अब ललन सिंह कांग्रेस पर हमलावर हैं. उन्होंने बिहार में जातिगत सर्वे के मुद्दे पर कांग्रेस नेता राहुल गाँधी पर तीखे शब्दों में हमला बोला है. विरोधी दलों और नेताओं पर हमला बोलने में ललन सिंह पहले भी ऐसे ही तेवर में दिखे हैं.फिर भी ललन सिंह को लेकर बिहार की सियासत में ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि वो अपना पाला बदलकर जेडीयू से अलग हो सकते हैं.
नीतीश के बेहद क़रीबी माने जाने वाले ललन सिंह ऐसा पहले भी कर चुके हैं.ललन सिंह के अलग होने की संभावना के सवाल पर जेडीयू विधायक गोपाल मंडल का कहना है, “ललन बाबू को आरजेडी कभी पसंद नहीं करेगी. आरजेडी में कहाँ जाएंगे, कोई पूछेगा? और अगर ललन बाबू चले जाएंगे तो कुछ बिगड़ जाएगा.”गोपाल मंडल के बयान में भी ललन सिंह को लेकर एक तरह से भरोसे की कमी नज़र आती है, जो इशारा करते हैं कि जेडीयू में ललन सिंह को लेकर हालात सामान्य नहीं हैं.
दरअसल इस तरह की अटकलों के पीछे ललन सिंह का हाल के समय में केंद्र सरकार पर की गई तीखी टिप्पणी है. कुछ लोग यह मानते हैं कि जेडीयू का बीजेपी के साथ होने से ललन सिंह असहज हो सकते हैं.गुरुवार को पेश हुए अंतरिम बजट पर भी ललन सिंह ने एनडीए के कई नेताओं से अलग इस बजट को ‘मिला-जुलाकर ठीक’ बजट कहा है, यानी उनकी प्रतिक्रिया काफ़ी ठंडी नज़र आई है.पिछले साल अगस्त के महीने में कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर संसद में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे.इस प्रस्ताव के समर्थन में जेडीयू सांसद ललन सिंह ने काफ़ी तीखे शब्दों में केंद्र सरकार पर हमला बोला था.
ललन सिंह का असली नाम राजीव रंजन सिंह है.वो राजनीति में ललन सिंह के नाम से मशहूर हैं. वो जेडीयू के बिहार प्रदेश के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. जुलाई 2021 में जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था.ललन सिंह फ़िलहाल बिहार की मुंगरे लोकसभा सीट से सांसद हैं. साल 2019 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की नीलम देवी को हराया था.
इस सीट पर साल 2014 में सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी ने ललन सिंह को हरा दिया था. उन चुनावों में नीतीश बीजेपी से अलग हो गए थे.एनडीए से अलग रहने के दौरान संसद के भीतर ही नहीं बाहर भी ललन सिंह विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन की भी मज़बूती से पैरवी करते नज़र आते थे.इसलिए माना जाता है कि ललन सिंह के लिए जेडीयू का बीजेपी से वापस गठबंधन होने से हालात असहज हो गए हैं.ललन सिंह जेडीयू को नहीं छोड़ सकते क्योंकि नीतीश के एनडीए में वापस आने के बाद बिहार का सियासी समीकरण 2019 के लोकसभा चुनावों जैसा हो गया है.उस वक़्त एनडीए को बिहार की 40 में से 39 सीटों पर जीत मिली थी.
अगस्त 2022 में बिहार में नीतीश और लालू के साथ आने के पीछे भी ललन सिंह की बड़ी भूमिका मानी जाती थी. उसी समय बिहार में दूसरी बार महागठबंधन की सरकार बनी थी, जिसमें कांग्रेस और वाम दल भी शामिल हुए थे.ललन सिंह भूमिहार बिरादरी से आते हैं. माना जाता है कि भूमिहारों को बड़ा वोट बीजेपी और जेडीयू के साथ है. बीजेपी ने जिन दो लोगों को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनवाया है.इनमें से एक उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा हैं, जो भूमिहार बिरादरी से आते हैं. यानी बीजेपी भूमिहार वोटरों को रिझाती नज़र आती है.जेडीयू के ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ जुड़े रहने के दौरान बिहार में इस बात की चर्चा खूब होती रही है कि ललन सिंह को मुंगरे सीट से हराने के लिए बीजेपी अपनी पूरी ताक़त लगा सकती है.कहा जाता था कि इसके लिए बीजेपी भूमिहार बिरादरी के अपने बड़े नेता गिरिराज सिंह को भी मुंगेर से चुनाव लड़वा सकती है.मुंगेर सीट पर भूमिहार वोटरों का बड़ा असर है. लेकिन माना जाता है कि भूमिहार नेता के तौर पर इलाक़े में ललन सिंह से ज़्यादा लोकप्रियता बाहुबली नेता कहे जाने वाले अनंत सिंह की है.
पिछले लोकसभा चुनाव में अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को कांग्रेस ने इस सीट से चुनाव लड़वाया था.मुंगेर सीट पर मुस्लिम, यादव और निषाद वोटरों की भी बड़ी तादाद है. कहा जाता है कि पिछले दिनों इसी वर्ग का समर्थन हासिल करने के लिए ललन सिंह आरजेडी और लालू प्रसाद यादव के क़रीब नज़र आते थे.वहीं जातिगत सियासी समीकरणों की बात करें जेडीयू में मौजूदा समय में नीतीश के बेहद क़रीबी माने जाने वाले विजय चौधरी भी भूमिहार बिरादरी से आते हैं.उन्हें राज्य में एनडीए की नई सरकार में फिर से मंत्री बनाया गया है. यानी पार्टी में उनका क़द लगातार बढ़ता दिखता है.ऐसे में क्या जेडीयू और एनडीए में अपने भविष्य को लेकर ललन सिंह को कोई संदेह हो सकता है?
“नए समीकरण में बिहार में भूमिहार वोट नीतीश और एनडीए के साथ होगा. ललन सिंह को इसका फ़ायदा हो सकता है. लेकिन नुक़सान यह होगा कि सेक्युलर वोट और मुस्लिम वोट नीतीश से दूर चले गए हैं.”बिहार में एनडीए के खेमे में फ़िलहाल सीटों की साझेदारी को लेकर कोई फ़ैसला सामने नहीं आया है. हालाँकि राज्य की सियासत में कई ऐसे छोटे खिलाड़ी हैं, जिनकी सीटों की दावेदारी बड़ी है.ऐसे में सीट बंटवारे पर ललन सिंह की भी नज़र होगी और चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा जैसे छोटे क्षत्रपों की भी.
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