नीतीश के मास्टर स्ट्रोक का सामना कैसे करेगी बीजेपी?

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में जातीय जनगणना और आर्थिक सर्वे के जरिये नीतीश कुमार ने बड़ा खेला कर दिया है. आरक्षण की सीमा 75 फीसदी करने की घोषणा और 6000 से कम इनकम वाले 94 लाख परिवारों को दो लाख रुपये की किश्तों में आर्थिक मदद देने  नीतीश सरकार के प्रस्ताव को मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है.इतना ही नहीं नीतीश सरकार ने भूमिहीन गरीबों को घर बनाने के लिए एक बार एकमुश्त एक लाख रुपये देने का ऐलान कर दिया है.

 

नीतीश कुमार ने सर्वे के जरिये एक ओर बीजेपी के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से मुकाबले के लिए जातीय राजनीति को हवा दे दी, दूसरी ओर नरेंद्र मोदी के पीएम आवास योजना और 5 किलो मुफ्त राशन वाले पॉपुलर स्कीम का तोड़ भी ढूंढ लिया. बिहार के 67 लाख लोगों को सीधे फायदा  मिलेगा .नीतीश कुमार का यह ऐलान 2024 के लोकसभा चुनावों में मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है. ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग को नौकरी और शैक्षणिक 43 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है. अनुसूचित जाति को आरक्षण में 20 फीसदी की भागीदारी मिलेगी. 2 फीसदी कोटा अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व होगा. इस तरह कुल मिलाकर 75 प्रतिशत सीटें आरक्षित हो जाएंगी. आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण इससे अतिरिक्त होगा.

 

 सर्वे के अनुसार, बिहार में पिछड़े और अति पिछड़े की आबादी 63 फीसदी है. आरक्षण की नई व्यवस्था के अनुसार, 25 फीसदी सीटों पर सामान्य वर्ग के लिए होगी. इस 25 फीसदी में सभी जाति की बराबर की हिस्सेदारी है. बिहार में सवर्णों की पार्टी मानी जाने वाली बीजेपी के लिए दुविधा यह है कि वह सीधे तौर से आरक्षण का विरोध नहीं कर सकती है. समर्थन करने के अलावा उसके पास दूसरा विकल्प नहीं है. बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने इसका समर्थन करते हुए आरक्षण को पंचायत स्तर पर लागू करने की मांग की है. नीतीश कुमार ने आरक्षण वाला दांव चलकर बीजेपी को कम से कम बिहार में घेर ही लिया है.


सर्वे में यह सामने आया कि बिहार में 34 फीसदी आबादी की मंथली इनकम 6000 रुपये से कम है. 13 करोड़ की आबादी वाले बिहार में 94 लाख परिवार एक हजार से 6 हजार रुपये में अपना गुजारा करते हैं. सामान्य तौर से यह गरीबी रेखा के नीचे गिने जाने वाली आबादी बहुत बड़ा वोट बैंक है. एक परिवार में 2 वोट का औसत देखें तो करीब 1 करोड़ 84 लाख वोटर सीधे तौर से नीतीश कुमार के आर्थिक सहायता से प्रभावित होंगे. 2024 के चुनाव तक अगर नीतीश कुमार अपनी स्कीम जनता तक पहुंचाने में सफल रहे तो बीजेपी की मुश्किल बढ़ सकती है.


नीतीश कुमार ने जिन दो योजनाओं की घोषणा की है, उससे बिहार की अर्थव्यवस्था पर 50 हजार करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा. इसके लिए पैसे कहां से आएंगे, यह बड़ा सवाल है. नौकरी के लिए बिहार से पलायन का रेकॉर्ड पुराना है. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले मुफ्त राशन और मकान पाने वालों के सामने नीतीश कुमार ने जो पासा फेंका है, वह उनके पौ-बारह करा सकती है. हालांकि नीतीश कुमार के आरक्षण वाले फैसले को कोर्ट में चुनौती मिल सकती है. सुप्रीम कोर्ट मध्यप्रदेश में 73 फीसदी आरक्षण, महाराष्ट्र में 16 फीसदी मराठा आरक्षण और राजस्थान की प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण के प्रस्ताव को नामंजूर कर चुका है.

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