सिटी पोस्ट लाइव : दिल्ली में जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के बीच दूरियां स्पष्ट तौर पर बढ़ती हुई नजर आ रही हैं. नीतीश जहां अन्य संभावनाओं की तलाश में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश और बिहार सरकार के मंत्री संजय झा के माध्यम से बीजेपी के लगातार संपर्क में हैं. वहीं, लालू प्रसाद यादव कांग्रेस को बिहार में आगामी लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें दिलवाकर नीतीश की बारगेनिंग पावर को कम से कम रखना चाह रहे हैं.
बीजेपी लालू यादव पर जांच एजेंसियों के जरिए दवाब बना रही है कि वह नीतीश कुमार से नाता तोड़े. इसका संकेत भी लालू यादव को आपराधिक मामलों में कुछ रियायतें देकर दी जा रही हैं. हाल के दिनों में तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद यादव को ईडी का मिला समन और फिर दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट के द्वारा तेजस्वी को बेल मिलना और खुद लालू का ईडी के समन पर गैरहाजिर रहना कई संकेत दे रहा है. लालू यादव की गिरफ्तारी से मिली छूट यह संकेत देता है कि कहीं न कहीं केंद्र सरकार लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार को कुछ रियायतें देकर नीतीश कुमार के ऊपर दवाब बढ़ाना चाहती है.
दरअसल, बीजेपी मौके का फायदा उठाना चाहती है.वो चाहती है कि नीतीश कुमार कम से कम मुख्यमंत्री पद की दावेदारी छोड़ दें.जेडीयू सूत्रों के अनुसार नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी फिरहाल छोड़ने वाले नहीं हैं.मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर ही बीजेपी और जेडीयू के बीच पेंच फंसा हुआ है. पद से विदाई क्या लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर हुई है?
नीतीश कुमार की समस्या ये है कि बीजेपी का विश्वास पहले ही खो चुके हैं. ‘इंडिया’ गठबंधन के शीर्ष नेता भी अब उन पर विश्वास नहीं कर रहे. ‘इंडिया’ गठबंधन को यह भय सता रहा है कि अगर नीतीश कुमार को लोकसभा में ज्यादा सीटें दी गईं तो चुनाव के बाद वह सबसे कमजोर कड़ी साबित होंगे. नीतीश कुमार कभी भी बीजेपी की तरफ जा सकते हैं. इसलिए, कांग्रेस और राजद की अगली रणनीति यह है कि नीतीश कुमार को लोकसभा में कम सीटें दी जाएं अथवा ऐसी सीटें दी जाएं जहां जीतना जनता दल यू के लिए काफी मुश्किल हो.
नीतीश कुमार को लालू प्रसाद यादव पर विश्वास है और न लालू प्रसाद यादव को ही नीतीश कुमार पर विश्वास है. ललन सिंह का अघ्यक्ष पद से विदाई इसी कड़ी का पहला अध्याय है. लालू प्रसाद यादव जो चाल नीतीश कुमार के खिलाफ चलने वाले थे. उसके उदभेदन होने के कारण ही ललन सिंह को अपना पद छोड़ना पड़ा है. नीतीश कुमार आज की तारीख में किसी पर भरोसा नहीं कर सकते.इसलिए, अध्यक्ष पद की कुर्सी पर खुद बैठ चुके हैं. लालू प्रसाद यादव भी मौके की तलाश में हैं कि नीतीश कुमार के नए पेंतरे से कैसे निपटा जाए और लोकसभा चुनाव तक सरकार में रहा जाए या उससे पहले ही नीतीश कुमार को बाय-बाय कर दिया जाए. तेजस्वी यादव का नए साल विदेश दौरा रद्द होना यह बता रहा है कि आने वाले दिनों में बिहार में राजनीतिक भूचाल आने वाला है.