चुनावों से काले धन का होगा अंत, वन नेशन वन इलेक्शन से देश में बदलाव

Manshi Sah

सीटी पोस्ट लाइव

नई दिल्ली: संसद में वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक पेश होने वाला है। यदि यह पास हो गया तो देश के चुनावी तंत्र में बड़ा बदलाव आ सकता है और देश की राजनीति की दिशा बदल सकती है। इस योजना का उद्देश्य है कि देश में एक साथ केवल एक चुनाव हो। मोदी सरकार की मंशा है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराया जाए। मोदी सरकार का यह तीसरा कार्यकाल है और इस मामले को मौजूदा शीतकालीन सत्र में विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। विधेयक का मतलब है, किसी विषय पर कानून बनाना, जिसे सभी को पालन करना होता है। इस पर सरकार सदन में विस्तार से चर्चा चाहती है। इसे संयुक्त संसदीय समिति में भेजने की संभावना है, जिसमें पक्ष और विपक्ष दोनों के सदस्य होते हैं।

मोदी कैबिनेट ने दी है हरी झंडी

यह मुद्दा अचानक नहीं उठाया गया है। बीजेपी के बड़े बदलाव वाले लक्ष्यों में यह पहले भी शामिल रहा है। मोदी के सत्ता में आने के बाद से, 2014 के बाद से इस पर और चर्चा तेज हुई है। हालांकि, पहले दो कार्यकालों में मोदी सरकार ने अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जैसे नोटबंदी, जीएसटी, राम मंदिर, सीमा सुरक्षा, ट्रिपल तलाक, एनआरसी आदि। मगर इस तीसरे कार्यकाल में वन नेशन-वन इलेक्शन सबसे प्रमुख मुद्दा है। 

इसीलिए, इस पर विचार करने के लिए 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। समिति ने 14 मार्च 2024 को अपनी रिपोर्ट वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी थी, और इसके बाद मोदी कैबिनेट ने इसे मंजूरी दी।

191 दिनों का विचार-विमर्श

समिति ने 191 दिनों तक देश के प्रमुख राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों से विचार-विमर्श किया और 18,626 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट पेश की। समिति ने 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया, जिनमें से 32 दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया, और 15 दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

जीडीपी में होगी बढ़ोतरी या नुकसान

राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश जी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि अगर देश में एक साथ चुनाव हुए तो देश की जीडीपी में 1.5% की वृद्धि हो सकती है।

वहीं विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. सीपी शर्मा ने इस योजना के नकारात्मक प्रभावों की भी चर्चा की थी। उनके अनुसार, इसके लिए संविधान में बड़े बदलाव, अत्यधिक खर्च, एक साथ कई चुनावों को आयोजित करना, मतदाताओं को भ्रमित करना, क्षेत्रीय मुद्दों का उपेक्षित होना, और संघवाद एवं लोकतंत्र को कमजोर करना जैसे दुष्परिणाम हो सकते हैं।

इससे होने वाले फायदे

  • सरकारी कर्मचारियों को बार-बार चुनावी ड्यूटी से राहत मिलेगी।
  • चुनावों में काले धन का प्रयोग कम होने की संभावना।
  • छोटी पार्टियों को चुनावी फंड में राहत मिलेगी, प्रचार पर कम खर्च होगा।
  • पार्टियों और उम्मीदवारों पर खर्च का दबाव कम होगा।

पार्टीयों का विरोध 

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने इसे खारिज कर दिया है। सीपीएम ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ और संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली पर हमला बताया है।

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