सिटी पोस्ट लाइव : सुप्रीम कोर्ट ने लालू यादव को बड़ी राहत और सीबीआई को तगड़ा झटका दे दिया है.सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ संकेत दिया है कि चारा घोटाले के एक मामले में झारखंड हाईकोर्ट द्वारा RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव को दी गई जमानत को रद्द करना आसान नहीं होगा.कोर्ट ने कहा कि राजनेता पिछले चार साल से जेल से बाहर हैं. सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि हाई कोर्ट से राहत देने में गलती हुई, इस मामले में कानून का एक छोटा सवाल है तो जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और जस्टिस एम. एम. सुंदरेश की पीठ ने कहा कि जमानत 2019 में दी गई थी. पीठ ने कहा, ‘अगर हम आपके पक्ष में बात कहते हैं तो भी उन्हें वापस भेजना बहुत मुश्किल होगा.’ राजू ने कोर्ट में कहा कि HC ने यह मानने में गलती की थी कि चारा घोटाले के विभिन्न मामलों में लालू को दी गई सजा एक साथ चलनी थी, न कि एक के बाद एक. ASG ने कहा, ‘लाल को जमानत इस गलत धारणा पर दी गई कि उनको मिली सजा एक साथ चलेगी एक के बाद दूसरी नहीं.’
लालू की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से कहा कि मामले में अपील भी सीबीआई की तरफ से 14-15 महीने की देरी से दायर की गई है. उन्होंने पीठ से अनुरोध किया कि भविष्य में किसी अन्य मामले में निर्णय के लिए कानून के सवाल को खुला रखते हुए इसका निपटारा किया जाना चाहिए.CBI पर निशाना साधते हुए सिब्बल ने कहा कि एजेंसी का मुख्य इरादा अपने मुवक्किल को 2024 के चुनाव तक जेल में रखना है. संक्षिप्त सुनवाई के बाद पीठ ने मामले को जनवरी तक के लिए स्थगित कर दिया. जांच एजेंसी ने हाई कोर्ट के 12 जुलाई 2019 को पारित आदेश को चुनौती देते हुए कहा है कि उसने निचली अदालत द्वारा सुनाई सजा को गलत तरीके से निलंबित किया और RJD प्रमुख को चारा घोटाले के एक मामले में जमानत पर रिहा कर दिया था.दरअसल, लालू के वकीलों ने कहा था कि एक मामले में दी गई सजा साथ-साथ चलती है. इसे हाई कोर्ट ने मान लिया था. अगस्त में लालू के वकील सिब्बल ने दलील दी थी कि उनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है और सीबीआई उन्हें फिर से जेल भेजना चाहती है. तब सीबीआई ने कहा था कि लालू यादव बैडमिंटन खेल रहे हैं.
हाई कोर्ट ने देवघर कोषागार से 89.27 लाख रुपये की धोखाधड़ी से निकासी के मामले में भी यादव को इस आधार पर जमानत दी थी कि उन्होंने अपनी साढ़े तीन साल की जेल की सजा का आधा समय पूरा कर लिया था. सुप्रीम कोर्ट सीबीआई की अपील पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया था और फरवरी 2000 में लालू प्रसाद को नोटिस जारी किया था.