क्राइस्ट द्वारा बताये मार्ग और सनातन धर्म में उद्धृत संदेश में कोई असमानता नहीं : स्वामी श्रद्धानन्द

Rahul K
By Rahul K

सिटी पोस्ट लाइव
रांची ।
जीसस क्राइस्ट का जन्म ईश्वरीय योजना के तहत हुआ, जो वहां के लोगों को अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाने के लिए था। जीसस क्राइस्ट का जब जन्म हुआ था, तब उनके जन्म के समय भारत के तीन उच्च कोटि के आध्यात्मिक संत वहां विद्यमान थे। जीसस क्राइस्ट के जीवन के अतिमहत्वपूर्ण 13 प्रमुख साल भारत में बीते, इन बातों का रहस्योद्घाटन स्वामी श्रद्धानन्द गिरि ने रविवारीय सत्संग के दौरान योगदा सत्संग आश्रम में योगदा भक्तों के बीच की।

उन्होंने प्रमाण स्वरूप पुरी में जगन्नाथपुरी से संबंधित पौराणिक अभिलेख का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां के अभिलेख में भी इस बात की चर्चा की गई है कि ईसा मसीह नाम से एक महान आध्यात्मिक संत का पुरी में आगमन हुआ था। जीसस क्राइस्ट ने दुनिया को प्रेम व अध्यात्म का वह उच्च कोटि का संदेश दिया, जो ईश्वर के प्रति सच्चे प्रेम को प्रदर्शित करता है। स्वामी श्रद्धानन्द गिरि ने कहा कि 1894 में जब कुम्भ का मेला लगा था तब महावतार बाबाजी ने युक्तेश्वर गिरि को कहा था कि वे जल्द ही उनके पास एक उच्चकोटि के साधक को भेजेंगे, जो पूर्व और पश्चिम को अध्यात्म के क्षेत्र में एकाकार करेगा, जो योग व ध्यान के माध्यम से पूर्व और पश्चिम को निकट लाकर रख देगा और ये बात आगे चलकर सत्य भी हुई।

जब परमहंस योगानन्द जी युक्तेश्वर गिरि जी से मिले, शिष्य व गुरु दोनो को भी इसका आभास उसी वक्त हो गया। दोनों को पता लग गया कि दोनों का उद्देश्य क्या है युक्तेश्वर गिरि से मिलने के पूर्व परमहंस योगानन्द जी जो सद्गुरु की तलाश में थे, उनकी यह तलाश उसी वक्त खत्म हो गई। बाबाजी ने जो संदेश युक्तेश्वरजी को दिया था, उक्त संदेश को उसी वक्त युक्तेश्वर गिरि भांप गये, जब उन्होंने परमहंस योगानन्द जी को पहली बार देखा। चूंकि बाबाजी यानी महावतारबाबा जी ने पहले ही कह दिया था कि परमहंस योगानन्द जी को पश्चिम जाने के पूर्व, उन्हें उस लायक आप ही प्रशिक्षित करोगे। तो वह दिन आ चुका था।

उस वक्त परमहंस योगानन्द जी इसी रांची में जहां पहले स्टोर रुम हुआ करता था, वहां वे ध्यान लगाया करते थे। एक दिन जब वे ध्यान में थे, तभी उन्हें आभास हुआ कि उन्हें पश्चिम जाने को कोई कह रहा हैं। वे 1920 में अपने गुरुदेव युक्तेश्वर गिरि से मिले और पश्चिम जाने का प्रबंध किया। इधर परमहंस योगानन्द अमरीका जा रहे थे और युक्तेश्वर गिरि को जो संदेश महावतार बाबा जी ने दिया था, उस संदेश को वे अपने प्रिय शिष्य में हृदयारोपित कर रहे थे।

दरअसल सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों व आध्यात्मिक पुस्तकों में जो बातें उद्धृत थी, वहीं बातें पश्चिमों में चल रही बाइबल को लेकर भी थी। दोनों में एक समानता को देखते हुए, उन्होंने क्रियायोग व ध्यान की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट कराया। उन्होंने कहा कि जो बातें सनातन धर्म में कही गई हैं, वहीं बातें बाइबल में भी हैं। उन्होंने कहा कि ईसा मसीह के जन्म के समय सात परियों के हाथ में जो कैंडल हैं। वो सात चक्रों के प्रतीक हैं। बाइबल में जीसस क्राइस्ट ने जो कहा कि दोनों आंखों की दृष्टि जब एक हो जायेगी, तो तुम प्रकाश से भर जाओगे, यही बात हमारे यहां योग में कही गई है ।

स्वामी श्रद्धानन्द ने कहा कि जब इस प्रकाश से व्यक्ति ओतप्रोत होता हैं तो वो मोक्ष, मुक्ति, आत्मसाक्षात्कार व कैवल्य को प्राप्त कर लेता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर के सामने बालस्वरुप है। ईश्वर सभी का पिता है। जीसस क्राइस्ट के संदेश और सनातन धर्म में उद्धृत संदेश में कही कोई असमानता नहीं। अपने मन-मस्तिष्क को एकाग्र करिये, अपनी इच्छाशक्ति को दृढ़ करिये, अपने शरीर को रिलैक्स करिये और ईश्वर से प्रेम करना सीखिये।

ईश्वर के अस्तित्व को जैसे ही आप महसूस करेंगे आप ईश्वर को पा जायेंगे। संयम, धारणा और समाधि सभी आपके लिए हैं। जीसस क्राइस्ट ने हमें वैज्ञानिक तरीके से योग के द्वारा ईश्वर को पाने का तरीका सीखाया था। आइये हम अपने सात चक्रों को जगाने की कोशिश करें और उन्हें प्रकाश से भरने की कोशिश करें। अपनी आत्मा को आलोकित करते हुए उस प्रभु के हो जाये।

Share This Article