मुकेश सहनी को अर्श से फर्श तक पहुंचाने का BJP खेल.

City Post Live

सिटी पोस्ट लाइव : वीआइपी पार्टी के सुप्रीमो मुकेश सहनी आज NDA की बैठक में शामिल नहीं हुए हैं.सूत्रों के अनुसार अभीतक उन्हें बीजेपी की तरफ से बैठक में शामिल होने का न्यौता ही नहीं मिला है. मुकेश सहनी भले आज NDA की बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं लेकिन उनका चैप्टर अभी क्लोज नहीं हुआ है.अभी भी बीजेपी के नेता उन्हें मनाने की कोशिश कर रहे हैं.सूत्रों के अनुसार सहनी की सबसे बड़ी मांग निषाद आरक्षण को लेकर है.वो  लोकसभा चुनाव में बिहार के साथ यूपी और झारखंड में भी सीटें चाहते हैं. इसके अलावा एक राज्यसभा व एक बिहार विधान परिषद् की  सीट भी चाहते हैं.

मुकेश सहनी ने हाल ही में अपने एक बयान से इस बात के संकेत भी दिए हैं कि उनके तार बीजेपी से सही नहीं मिल पा रहे हैं. तेजस्वी यादव के लैंड फॉर जॉब मामले में चार्चशीटेड होने के एक सवाल पर 7 दिन पहले उन्होंने कहा था कि बीजेपी को पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए.उन्होंने कहा था कि बीजेपी के कई नेता है, जिसपर कई तरह के मुकदमें हैं, लेकिन किसी तरह की कार्रवाई नहीं होती है. भाजपा में शामिल होते ही दूसरे पार्टी के नेता वॉशिंग मशीन से धूल जाते हैं. कोई कितना भी गंदा हो, बीजेपी के वाशिंग मशीन में जाएंगे तो साफ होकर बाहर निकलेंगे.

मुकेश सहनी बिहार की सियासत से फिलहाल पूरी तरह आउट हैं. उनकी पार्टी का फिलहाल किसी सदन में कोई नेता नहीं है, जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने कोटे में आई 121 सीट में से 11 सीट VIP को दी थी. इनमें से चार सीट पर VIP को जीत भी मिली.इस जीत ने सहनी को बिहार की सियासत में नई ताकत दी थी. इतना ही नहीं सरकार बनने के बाद मुकेश सहनी को बिहार सरकार में मंत्री भी बनाया गया, लेकिन उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ कुछ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए. इससे भाजपा खफा हो गई.दो साल के अंदर 2022 में बीजेपी ने मुकेश सहनी को अर्श से फर्श पर लाकर खड़ा कर दिया. उनके सभी विधायकों को अपने पाले में कर लिया. सहनी को मंत्री पद के साथ विधान पार्षद पद से भी इस्तीफा देना पड़ा था.

मुकेश सहनी की ताकत को BJP अच्छी तरह से जानती है. मुकेश सहनी ने बिहार में अपनी पहचान सन ऑफ मल्लाह के रूप में बनाई है. बिहार में इनकी आबादी लगभग 5 फीसदी से ज्यादा है.ऐसे में पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो भले वे सीट नहीं जीते, लेकिन लगभग 10 लोकसभा सीटों पर वे बीजेपी के वोटों का बिखराव रोक सकते हैं. ऐसा उन्होंने पिछले चुनावों में साबित भी किया है.इसलिए अभी भी उन्हें साथ लाने की कोशिश जारी है.

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