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12 राज्यों में BJP की सरकार,2024 के लिए क्‍या हैं मायने?

अब 12 राज्‍यों यानी 41% आबादी पर BJP की हुकूमत, इंडिया गठबंधन की बढ़ गई है चुनौती.

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सिटी पोस्ट लाइव :  2024 के आम चुनावों से पहले बीजेपी ने हिंदी बेल्ट के तीन प्रमुख राज्यों में चुनाव जीत कर इंडिया गठबंधन की हवा निकाल दी है. पार्टी अब केंद्र में भी लगातार तीसरे कार्यकाल की उम्मीद कर रही है. इस समय बीजेपी का 12 राज्यों में शासन है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार शाम पार्टी कार्यकर्ताओं को दिए अपने विजय भाषण में कहा, ‘कुछ लोग कह रहे हैं कि इस हैट्रिक ने 2024 की जीत की गारंटी दी है. आज का जनादेश साबित करता है कि लोगों में भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और वंशवादी राजनीति के प्रति शून्य सहिष्णुता है.’नवीनतम चुनाव ने दो और राज्यों – राजस्थान और छत्तीसगढ़ – में भाजपा का विस्तार किया है. दोनों राज्यों को उसने कांग्रेस से छीने.

 

फिलहाल देश के 12 राज्यों बीजेपी की अपनी सरकार है. इनमें – उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, असम, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड, त्रिपुरा, मणिपुर, गोवा और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं. इसकी गठबंधन सरकारें महाराष्ट्र, मेघालय, नागालैंड और सिक्किम में फैली हुई हैं.कांग्रेस के सिर्फ तीन राज्यों – कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश – का शासन है, जिनमें देश की आबादी का केवल 8.51 प्रतिशत हिस्सा शामिल है. बिहार और झारखंड में इसके सत्तारूढ़ गठबंधनों की गिनती करते हुए, उसका 19.84 प्रतिशत भारतीयों पर शासन है.

 

यह चुनाव उत्तर में भाजपा की ताकत को उजागर करता है, जहां उसके मुख्य मतदाता हैं. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कई लोगों द्वारा खारिज किए जाने के बावजूद, पार्टी ने अपनी मजबूत चुनाव मशीनरी की ताकत और अपने रणनीतिकारों की चतुराई से दोनों राज्यों में जीत हासिल की है.कांग्रेस के लिए राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार एक बड़ा झटका है इससे इंडिया गठबंधन में उसकी स्थिति कमजोरी होगी और वह अधिक सौदेबाजी की स्थिति में नहीं होगी. इन चुनाव परिणामों से यह भी साबित हुआ कि उत्तर भारत में कांग्रेस की पकड़ बहुत कमजोर है.

 

बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस पर हठधर्मी रवैया अपनाने का आरोप लगाया और उसे आत्ममंथन करने की सलाह दी. तृणमूल प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, ‘यह बीजेपी की सफलता नहीं है, यह कांग्रेस की विफलता है.’ उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस को अपनी ‘जमींदारी मानसिकता’ से बाहर आना चाहिए और ममता बनर्जी जैसे अन्य वरिष्ठ नेताओं के अनुभव को साझा करना और लागू करना चाहिए.’

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