BJP में कामेश्वर चौपाल की भरपाई मुश्किल, चुनाव में क्या पड़ेगा असर?

City Post Live

सिटी पोस्ट लाइव : बिहार विधान सभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी ने अपना एक बड़ा दलित नेता खो दिया है. दलित नेता कामेश्वर चौपाल का निधन हो गया है.कामेश्वर चौपाल के हाथ से  राम मंदिर निर्माण के शिलान्यास कार्यक्रम में पहली ईंट रखवा कर बीजेपी ने  दलित प्रेम का अपना वह चेहरा दिखाया था जो पूरे देश के सामने एक नाजिर बन गया.कामेश्वर चौपाल की चर्चा राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी के रूप में होती थी. ये पहली बार विशेष चर्चा में तब आए जब इन्होंने जब अयोध्या के राम मंदिर निर्माण हेतु शिलान्यास कार्यक्रम में पहली ईंट रखा और प्रथम सेवक कहलाए.

कामेश्वर चौपाल दूसरी बार विशेष चर्चा में तब आये  जब अचानक से उन्हें पार्टी द्वारा उप-मुख्यमंत्री बनाए जाने की बात सामने आई.बीजेपी ने दलित नेता कामेश्वर चौपाल को चुनावी जंग में भी उतारा. भाजपा के सियासी रण में ये प्रमुख भूमिका निभाने वाले दलित नेता के रूप में कामेश्वर चौपाल की पहली जंग रोसड़ा लोकसभा में राम विलास पासवान से हुई थी. पर वह रामविलास पासवान को कड़ी चुनौती तो दी पर चुनाव हार गए.1995 में भाजपा ने कामेश्वर चौपाल को बखरी विधान सभा से भी आजमाया पर, यहां भी निराशा हाथ लगी. तब भाजपा ने दलित नेता कामेश्वर चौपाल को उच्च सदन यानी विधान परिषद भेजा.आगामी विधान सभा में भाजपा को कामेश्वर चौपाल की विशेष कमी मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, समस्तीपुर और बेगूसराय जिले के तमाम विधान सभा क्षेत्र पर पड़ेगा.

कामेश्वर चौपाल 2002 से 2014 तक वे विधान परिषद के सदस्य रहे. 2014 में उन्हें एक बार फिर बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में उतारा. वह सुपौल लोकसभा से कांग्रेस नेत्री रंजीत रंजन के विरुद्ध लड़े पर यहां भी चुनाव हार गए. बिहार विधान सभा चुनाव 2025 के ऐन मौके पर दलित नेता कामेश्वर चौपाल का जाना भाजपा के लिए एक बड़ा सेट बैक है. भाजपा ने एक बड़ा संगठनकर्ता खो दिया. संगठन के माहिर कामेश्वर चौपाल की स्वीकृति तमाम वर्ग और जाति के लोगों के बीच थी.शांत और सरल स्वभाव के कारण भाजपा के भीतर इन्हें ट्रबल शूटर माना जाता था. लेकिन इनकी विशेष पहचान और पहुंच दलित के बीच थी. इनको लेकर तो एक भ्रम भी था कि वे अतिपिछड़ा हैं. ऐसा इसलिए कि चौपाल टाइटल के कारण अतिपिछड़ा इन्हें अपना नेता भी मानते थे.

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