सिटी लाइव पोस्ट
पटना: बिहार के पूर्व डीजीपी डीपी ओझा का निधन हो गया है, जिसके कारण पूरे बिहार में शोक की लहर दौड़ गई है। बिहार ने एक सख्त और ईमानदार पुलिस अधिकारी खो दिया है, जिसे जनता बहुत सम्मान और प्यार देती थी। आखिर क्यों बिहार की जनता उन्हें इतना पसंद करती थी? उनका व्यक्तित्व और उनका काम ऐसा था कि वे सिर्फ एक अधिकारी नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में एक मिसाल बन गए थे। इन सवालों का जवाब जानने के लिए सिटी लाइव पोस्ट ने बुद्धिजीवी बैधनाथ चौधरी और प्रोफेसर विजय कुमार से बातचीत की।
डीपी ओझ नाम सुनते ही कांपते थे अपराधी
प्रोफेसर विजय कुमार ने बताया कि जब भी डीपी ओझा का नाम लेते ही उनके शरीर में रोंगटे खड़े हो गए। उन्होंने बताया, “मैं 1974 से उन्हें जानता था, उस वक्त मैं और जयप्रकाश आंदोलन में थे। जाहिर है इस डीपी ओझा हमलोग के ताकत के ख़िलाफ़ थे. होमलोग उस वक़्त नारे लगते थे- पुलिस हमारा भाई है उनसे नहीं लड़ाई है। तब हमें यह महसूस हुआ था कि ओझा जैसे पुलिस अधिकारी हमारे खिलाफ नहीं, बल्कि हमारे अपने थे। वे कानून के पालनकर्ता थे,जो अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्ध था।”
अपराधियों के लिए खतरनाक थे ओझा
डीपी ओझा का अपराधियों के प्रति रवैया बेहद सख्त और नीतिगत था। वे न सिर्फ सख्त थे, बल्कि बेहद बुद्धिमानी से कार्य करते थे।लेकिन सत्ता ने जो अन्य ईमानदार अधिकारियों का हर्षय किया वही ओझा के साथ भी अपनाया।
ओझा और सत्ता का संघर्ष
एक उदाहरण देते हुए बैधनाथ चौधरी ने कहा, डीपी ओझा चर्चा में तब आए जब उन्होंने शहाबुद्दीन के खिलाफ मोर्चा खोला था। उस समय शहाबुद्दीन का बहुत नाम था और सिवान में उनकी सत्ता का व्यापक असर था। वहां किसी दूसरी पार्टी के दफ्तर पर झंडा नहीं लगाया जा सकता था, क्योंकि शहाबुद्दीन, जो आरजेडी के नेता थे, सिवान में आरजेडी का झंडा ही प्रमुख रूप से दिखाई देता था।
शहाबुद्दीन के खिलाफ किसी ने भी आवाज उठाने की हिम्मत नहीं की थी, लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था कि लालू प्रसाद यादव भी शहाबुद्दीन के खिलाफ खड़े हो जाएंगे। इस परिस्थिति में डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन के खिलाफ कड़ा कदम उठाया। उनकी गिरफ्तारी के लिए पूरी सिवान जिले को पुलिस ने घेर लिया था और घंटों की मशक्कत के बाद शहाबुद्दीन को गिरफ्तार किया गया था।
मुख्यमंत्रियों के खिलाफ भी ओझा का कड़ा रुख
इस पर प्रोफेसर विजय कुमार ने कहा कि लालू प्रसाद यादव से पहले कई अन्य मुख्यमंत्रियों से भी डीपी ओझा ने खुलकर संघर्ष किया। समस्तीपुर में रेलवे मंत्री एलएन मिश्रा की हत्या के बाद ओझा ने ईमानदारी से उन नेताओं के खिलाफ कदम उठाए थे, जिन पर संदेह था। फिर भी, ओझा का करियर कठिनाइयों से भरा था और उन्होंने हमेशा अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता दी।
ओझा का नाम राष्ट्रीय स्तर प्रसिद्ध
डीपी ओझा का नाम तब पूरे देश में गूंज उठा जब उन्होंने बिहार के सिवान में अपराधी सहाबुद्दीन के खिलाफ कड़ा कदम उठाया। उनकी सख्त कार्रवाई और ईमानदारी ने उन्हें एक मील का पत्थर बना दिया। आज भी लोग उन्हें एक निष्पक्ष और साहसी अधिकारी के तौर पर याद करते हैं। डीपी ओझा में इतना साहस था कि उन्होंने मुख्यमंत्री के खिलाफ भी कार्रवाई की।
उनके फैसले हमेशा न्याय के पक्ष में होते थे, और उन्होंने कभी किसी दबाव के आगे झुकने की कोशिश नहीं की। उनके निधन से बिहार ने एक सच्चे और ईमानदार आईपीएस अधिकारी को खो दिया है, और राज्य में शोक का माहौल है। आज डीपी ओझा का निधन बिहार के लिए एक बड़ी क्षति है, लेकिन उनका योगदान और उनका नाम हमेशा लोगों के दिलों में जिन्दा रहेगा।