बिहार का रहस्यमयी गांव जहां 250 वर्षों से नहीं खेली गई होली, रंग लगाने से डरते हैं लोग

होली मनाने की कोशिश करने वालों को झेलनी पड़ी बड़ी दुर्घटना, मुंगेर के इस गांव में फागुन में नहीं बनते पकवान

Rahul
By Rahul

250 वर्षों से होली से दूर यह गांव, रंग लगाने से डरते हैं लोग

बिहार के मुंगेर जिले में एक अनोखा गांव है, जहां बीते 250 वर्षों से होली नहीं मनाई जाती। ऐसा कहा जाता है कि इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश करने वालों को भयंकर संकट का सामना करना पड़ा है। यहां तक कि पूरे फागुन महीने में गांव के लोग पारंपरिक पकवान तक नहीं बनाते। यह गांव असरगंज प्रखंड के सजुआ पंचायत में स्थित है और इसकी यह परंपरा एक रहस्यमयी घटना से जुड़ी है।

सती स्थान से जुड़ी रहस्यमयी कहानी

गांव के बुजुर्गों के अनुसार, करीब ढाई सौ साल पहले यहां दांगी समाज के लोग रहते थे। होली के दौरान, एक महिला के पति की मृत्यु हो गई। जब मृतक की अंतिम यात्रा निकाली जा रही थी, तब उसकी पत्नी ने भी प्राण त्यागने का संकल्प लिया। कहा जाता है कि महिला इतनी दैवीय शक्ति संपन्न थी कि उसके शरीर में स्वयं अग्नि प्रकट हो गई। मरने से पहले उसने गांव वालों को दो बातें कही—पहली, इस गांव में कभी होली नहीं मनाई जाएगी, और दूसरी, उसकी पुत्री से कोई झूठे बर्तन या अपवित्र कार्य नहीं करवाएगा।

हालांकि, कुछ समय बाद गांववालों ने इस नियम को तोड़ दिया और उसकी पुत्री को झूठे बर्तन धोने जैसे कामों में लगा दिया। इस पर नाराज होकर उस महिला की आत्मा पुनः प्रकट हुई और उसकी पुत्री को अपने साथ अग्नि में समाहित कर लिया। आज भी उसी स्थान पर ‘सती स्थान मंदिर’ मौजूद है, जिसे लोग अत्यधिक शक्तिशाली मानते हैं।

होली मनाने की कोशिश से होती हैं दुर्घटनाएं

गांव के वरिष्ठ नागरिकों और ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में कभी इस गांव में होली मनाते नहीं देखा। कई पीढ़ियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है। कुछ साल पहले, गांव के एक व्यक्ति ने होली के दिन मालपुआ और पूरी बनाने की कोशिश की। जैसे ही उसने कढ़ाई में तेल डालकर पुआ तलने की कोशिश की, वैसे ही गरम तेल के छींटे इतने तेज उछले कि उसके घर के छप्पर में आग लग गई और पूरा घर जलकर खाक हो गया।

गांव में यह मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति होली मनाने की कोशिश करता है, तो उसके साथ कोई न कोई अनहोनी हो जाती है। दिलचस्प बात यह है कि इस गांव की बेटियां शादी के बाद अपने ससुराल में होली मना सकती हैं, लेकिन इस गांव के बेटे, चाहे वे देश के किसी भी कोने में हों, होली के दिन कोई उत्सव नहीं मना सकते।

वैशाख में खेली जाती है होली

हालांकि, गांव के लोग होली से पूरी तरह दूर नहीं हैं। वे होली के रंगों को वैशाख महीने में मनाते हैं। विशुआ पर्व के दिन वे पुआ और पकवान बनाते हैं और आनंद उत्सव करते हैं। यह अनोखी परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी कायम है।

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