70th BPSC: क्यों भड़के छात्र,क्या होता है नॉर्मलाइज़ेशन?

City Post Live

सिटी पोस्ट लाइव : बीपीएससी ने एक दिन पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि सिविल सेवा परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन लागू नहीं करेगा. फिर क्यों छात्र  नॉर्मलाइजेशन के मुद्दे और  एक परीक्षा एक प्रश्नपत्र की मांग को लेकर शुक्रवार को सड़क पर उतर गये.दरअसल, दो पाली में आयोग ने परीक्षा लेने की घोषणा की है.दो पाली में परीक्षा कराये जाने को लेकर छात्रों को डर है कि आयोग नॉर्मलाइजेशन के आधार पर रिजल्ट तय करेगा.इसी आशंका की वजह से छात्र सड़क पर उतर गये.उग्र हो गये और उन्हें पुलिस की लाठी का शिकार बनना पड़ा.पुलिस ने बेरहमी की हद पार कर दी.छात्रों को दौड़ा दौड़ा कर पिटा.

नॉर्मलाइज़ेशन एक प्रक्रिया है, जिसके ज़रिए किसी परीक्षा में मिले अंकों को सामान्य किया जाता है. यह प्रक्रिया, तब अपनाई जाती है, जब एक से ज़्यादा पालियों में परीक्षा आयोजित की जाती है. नॉर्मलाइज़ेशन की मदद से, परीक्षा में मिले अंकों के आधार पर कैंडिडेट्स का प्रतिशत स्कोर निकाला जाता है. नॉर्मलाइजेशन कराकर सभी अभ्यर्थियों के अंकों को सामान्य किया जाता है. चूंकि एक से अधिक पाली में होने वाली परीक्षा के प्रश्नपत्र अलग-अलग होते हैं. ऐसे में कई बार ऐसा होता है कि पहली पाली में प्रश्न पत्र सामान्य आ जाते हैं. वहीं दूसरी पाली में कठिन प्रश्न पत्र आता है. 

ऐसे में  जिस पाली की परीक्षा में प्रश्न पत्र सामान्य होता है उसमें  अभ्यर्थियों को ज्यादा नम्बर आ जाता है. उअदहरण के लिए 150 नम्बर की परीक्षा है तो उसमें 140 अंक भी आ जाते हैं.. वहीं जिस पाली की परीक्षा में प्रश्न पत्र कठिन रहता है उसमें 150 नम्बर की परीक्षा में अभ्यर्थियों को कम अंक मिलते हैं. इस स्थिति में नॉर्मलाइज़ेशन अपनाया जाता है. यानी अगर पहली पाली की परीक्षा में अभ्यर्थियों को औसत अंक 140 आया और दूसरी पाली में औसत 120 अंक आया तो दोनों औसत अंक का औसत निकाला जाता है. उदहारण के तौर पर ऐसे में नॉर्मलाइज़ेशन की स्थिति में सभी अभ्यर्थियों के अंक 110 कर दिए जाते हैं. और उसी आधार पर आगे की चयन प्रक्रिया अपनाई जाती है. 

अभ्यर्थियों का विरोध इसी औसत अंक पद्धति को लेकर है. अभ्यर्थियों का कहना है कि जहां सिविल सेवाओं की परीक्षा में एक अंक से लोग असफल हो जाते हैं. वहां औसत अंक पद्धति वाले नॉर्मलाइज़ेशन से कई मेधावी अभ्यर्थियों का जीवन खराब हो जाएगा. इसलिए न तो नॉर्मलाइज़ेशन लागू हो और ना ही एक से अधिक पाली में परीक्षा हो. सवाल ये उठता है कि परीक्षा की तिथि घोषित करने से पहले आयोग ने छात्रों  की शंका का समाधान क्यों नहीं किया. अगर नॉर्मलाइज़ेशन नहीं अपनाया जाना है तो फिर दो पाली में परीक्षा लेने का मकसद क्या है, ये छात्रों को आयोग ने क्यों नहीं समझाया.आयोग की इसी चूक की वजह से छात्रों का आक्रोश भड़का है.उन्हें वेवजह पुलिस का डंडा खाना पड़ा है.

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