सिटी पोस्ट लाइव : JDU देश की एकलौती ऐसी पार्टी है जिसके तीन बड़े नेता पार्टी छोड़ सकते हैं.पार्टी के दो राष्ट्रिय अध्यक्ष अबतक पार्टी छोड़ चुके हैं. समता पार्टी के संस्थापक सदस्य जार्ज फर्नांडिस कभी JDU के अध्यक्ष नहीं बन पाए. साल 2004 में वह इस पद की लड़ाई हार गए थे. नीतीश की मदद से शरद JDU के अध्यक्ष बने. इसके बाद के पांच सालों में जार्ज और नीतीश के संबंध बिगड़ते चले गए.साल 2009 में वह दिन भी आया, जब JDU ने जार्ज को मुजफ्फरपुर से लोकसभा का उम्मीदवार नहीं बनाया. जार्ज निर्दलीय लड़े और हारे. नीतीश ने उसी साल राज्यसभा में भेजकर उनका सम्मान किया. यह मनोनयन उप चुनाव के तहत हुआ था, जिसका कार्यकाल महज एक साल था. राज्यसभा से विदा होने के बाद स्वास्थ्य कारणों से जार्ज फिर कभी राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं हो पाए.
20 साल पुरानी पार्टी JDU में शरद यादव लगातार 12 साल तक राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर रहे.लेकिन नीतीश कुमार से नीतिगत टकराव की वजह से एनडीए के संयोजक रहे शरद साल 2013 में इससे अलग हो गए.JDU के भाजपा से रिश्ते खराब हुए. साल 2015 का विधानसभा चुनाव जदयू-राजद ने एकसाथ लड़ा, लेकिन साल 2016 में नोटबंदी के सवाल पर शरद और नीतीश का रूख परस्पर विरोधी था. विवाद के और भी कारण थे, लेकिन भाजपा के प्रति नीतीश का झुकाव अंतत: शरद की जदयू से विदाई का कारण बना. उनकी राज्यसभा सदस्यता भी समाप्त हो गई. शरद राजद सदस्य के रूप में दुनिया से विदा हुए.
फिर आरसीपी सिंह JDU के राष्ट्रिय अध्यक्ष बने.एक साल के अन्दर ही वो केंद्र में मंत्री भी बन गये.शरद यादव का बीजेपी विरोध और आरसीपी सिंह का बीजेपी से बढती करीबी नीतीश कुमार को पसंद नहीं आई.नीतीश को ये डर सताने लगा कि कहीं बीजेपी से मिलकर आरसीपी सिंह कोई बड़ा खेल ना कर दें.फिर क्या था उन्हें दुबारा राज्य सभा नहीं भेंजा और उनकी केन्द्रीय मंत्री की कुर्सी छीन गई. कहा ये भी जाता है कि नीतीश की मर्जी के बिना वे केंद्रीय कैबिनेट में शामिल हुए.नीतीश कुमार ने उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया. गुरुवार को आरसीपी सिंह भी बीजेपी में शामिल हो गये.