सिटी पोस्ट लाइव : किडनी ट्रांसप्लांट के बाद लालू प्रसाद की राजनीतिक सक्रियता उनके विरोधियों की चिंता बढ़ा दी है.लालू प्रसाद अपने पुराने अंदाज में लौट आए हैं. ऐसे वक्त में जब सीएम नीतीश कुमार विपक्षी दलों को बीजेपी का चेहरा बनने की जुगत में हैं. बिहार की सियासत में लगभग शांत हो चुके लालू प्रसाद अगस्त 2022 से फिर से सक्रीय नजर आये. यही वो समय था, जब नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़ दोबारा से RJD के साथ आए. महागठबंधन की सरकार बनी. तेजस्वी यादव फिर से बिहार के डिप्टी सीएम पद की शपथ ली.
2020 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव चारा घाटाले में झारखंड के जेल में बंद थे, तब तेजस्वी यादव ने पार्टी की कमान संभाली. विधानसभा चुनाव के पोस्टर से लेकर प्रचार के कंटेट तक हर जगह से लालू प्रसाद यादव का नाम और चेहरा गायब कर दिया गया. तेजस्वी यादव न केवल अपने चेहरे पर चुनाव लड़े, बल्कि अपने दम पर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी भी बनाने में कामयाब रहे.इसके बाद उन्हें RJD में लालू प्रसाद यादव का उत्तराधिकारी माना जाने लगा.
अब जब लालू यादव एकबार फिर से सक्रीय हो गये हैं उनका एकमात्र उद्देश्य अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को बिहार के मुख्यमंत्री बनाने का है. इसके लिए जो जोड़-तोड़, छल-प्रपंच के साथ साथ साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाना पड़े, अपनाएगें. ये उनके लिए सबसे अनुकूल मौका है. नीतीश कुमार कमजोर हुए हैं. उनकी कमजोरी का लाभ उठाकर तेजस्वी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया जा सकता है.
बिहार में महागठबंधन का चेहरा तेजस्वी यादव को माना जा रहा है, लेकिन उनके पीछे लालू मजबूती से खड़े हैं. लालू के पास राजनीति अनुभव है. उनकी ताकत नीतीश भी जानते हैं. जमीन पर अब भी नीतीश कुमार से ज्यादा मजबूत लालू प्रसाद यादव हैं. यही कारण है कि किसी मसले पर विचार-विमर्श करना होता है तो नीतीश कुमार ज्यादा तवज्जो लालू प्रसाद को देते हैं.एक समय लालू प्रसाद यादव को दिल्ली की सत्ता का किंग मेकर कहा जता था. राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के बीच लालू प्रसाद यादव के गहरे रिश्ते हैं. खास कर एंटी बीजेपी खेमों में उनकी मजबूत पैठ है.
विपक्षी नेताओं को एक करने की जरूरत हुई तो इसके सूत्रधार भी लालू यादव ही बने. बात चाहे कांग्रेस को मनाने की रही हो या ममता को मनाने की, नीतीश कुमार अपने साथ लालू प्रसाद को ही साथ लेकर गए. लालू और नीतीश की संयुक्त कोशिशों का प्रयास है कि भाजपा विरोधी दल एक प्लेटफॉर्म पर साथ आ सके.लालू और नीतीश की जोड़ी बिहार की सियासत में हमेशा कामयाबी के झंडे बुलंद करते रही है. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता शिखर पर थी. केंद्र में बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनी थी. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और संसाधनों के बावजूद बीजेपी ने लालू-नीतीश की जोड़ी को हरा नहीं पाई थी.