नीतीश ने जिन 11 लोगों को राज्य सभा सांसद बनाया, बन गये दुश्मन.

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सिटी पोस्ट लाइव : राजनीति के धुरंधर नीतीश कुमार जिसको भी राजनीति में आगे बढाते हैं, वो उनका साथ छोड़ जाते हैं.अबतक नीतीश कुमार ने 11 ऐसे लोगों को राज्य सभा सांसद बनाया है जिन्होंने उनका साथ छोड़ दिया. JDU  से राज्यसभा में नामित अधिकाँश लोग सदन के साथ-साथ पार्टी से भी विदा हो जाते हैं.अब अगली बारी राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश की है.उन्हें पता है कि अगला मौका नहीं मिलनेवाला है इसलिए अभी से उन्होंने अलग राह पकड़ ली है.

 

दल से विदा होने के पहले कुछ ऐसी ही भूमिका शरद यादव (दिवंगत) और अली अनवर ने भी बनाई थी. दोनों पार्टी की घोषित लाइन के उस पार खड़े हो गए थे. शरद यादव जदयू के संस्थापक थे. बड़े समाजवादी जार्ज फर्नांडीस राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद जदयू के संपर्क में नहीं रहे.डा. एजाज अली और साबिर अली जैसे राज्यसभा के सांसदों ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया. साबिर 2008 में लोजपा से राज्यसभा में गए. 2011 में पाला बदल कर जदयू में आ गए. राज्यसभा से हटने के बाद कुछ दिनों बाद बीजेपी के साथ चले गये.

 

महेंद्र सहनी जदयू के राज्यसभा सदस्य थे. कार्यकाल में उनका निधन हो गया. पुत्र अनिल सहनी को उनका बचा कार्यकाल मिला. एक पूर्ण कार्यकाल भी दिया गया. विवादों से घिरे रहने के कारण जदयू वे से अलग हो गए. अभी वो आरजेडी के साथ हैं.एनके सिंह और पवन कुमार वर्मा जैसे अकादमिक और प्रशासनिक क्षेत्र के दिग्गज भी राज्यसभा कार्यकाल तक ही जदयू से जुड़ कर रह पाए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी लोग न सिर्फ जदयू से अलग हुए, बल्कि नीतीश कुमार के राजनीतिक विरोधी भी हो गए.

 

उपेंद्र कुशवाहा ने तो राज्यसभा में कार्यकाल भी पूरा नहीं किया. अलग हुए और राष्ट्रीय लोक समता के नाम से नई पार्टी बना ली. वह दूसरी बार जेडीयू से जुड़े तो विधान परिषद का कार्यकाल छोड़ कर अलग हो गए. अभी राष्ट्रीय लोक जनता दल के नाम से उनकी नई पार्टी बनी है.नौकरशाह से नेता बने आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद थे.नीतीश कुमार ने उन्हें राज्य सभा भेंजा.केंद्र में मंत्री भी बने.लेकिन इस दौरान वो JDU से दूर और बीजेपी के करीब चले गये.राज्यसभा का कार्यकाल पूरा होने से पहले उन्होंने भी अपना रास्ता अलग कर लिया.

 

राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी का विवाद भी राज्यसभा सदस्य रहने के समय ही जेडीयू  से हुआ था.हालांकि, उसका कारण राजनीतिक था. तिवारी चाह रहे थे कि भाजपा से लड़ने के लिए जदयू स्वयं को विस्तारित करे. उन्होंने जदयू की उस समय की कार्यशैली की भी आलोचना की थी. यह उन्हें राज्यसभा में दूसरी बार न भेजने का कारण बना. केसी त्यागी को इस परम्परा का अपवाद माना जा सकता है.वह राज्यसभा से हटने के बाद भी जदयू से जुड़े हुए हैं. राज्यसभा के अलग होने के बाद भी पार्टी से जुड़े रहने वाले  केसी त्यागी, गुलाम रसूल बलियावी कहकशां परवीन कबतक जेडीयू के साथ बने रहेगें, कह पाना मुश्किल है.

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