सिटी पोस्ट लाइव : रघुवर दास ने ओडिशा के राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया है. 69 साल के है यानी भाजपा के 75 साल के रिटायरमेंट के पैरामीटर पर वे खरे उतरते हैं. अभी छह साल उनकी सियासी सक्रियता के शेष हैं. उनका रिपोर्ट कार्ड भी डिस्टिंक्शन मार्क के करीब रहा है. सियासी चर्चाओं में एक बात जो रघुवर दास के पक्ष में मजबूती से खड़ी है, यह कि भाजपा ने उन्हें जब-जहां चाहा, वहां तैनात कर दिया.उन्होंने बेझिझक उसे स्वीकार भी किया और खुद को साबित किया.केवल 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में वो चूक गये.
रघुवर दास का झारखंड की राजनीति में उदय जब से हुआ, तब से उनके खाते में कभी हार नहीं आई. वर्ष 2019 अपवाद रहा. तब न रघुवर जीत पाए और न भाजपा सत्ता में वापसी कर सकी. झारखंड में भाजपा की या गठबंधन के तहत जब-जब सरकारें बनीं, रघुवर मंत्री बनते रहे. 2014 में जब भाजपा झारखंड में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने की स्थिति में आई तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया. तब सीएम पद के लिए वे अचर्चित चेहरा थे. बिना किसी रुकावट पांच साल का सीएम कार्यकाल पूरा करने का रिकॉर्ड भी रघुवर के नाम ही अब तक दर्ज है. जेएमएम के हेमंत सोरेन भी पांच साल मुख्यमंत्री रहने वालों में शुमार हैं, लेकिन पांच महीने जेल में गुजारने के कारण उनके कार्यकाल में ब्रेक हो गया. फिर भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और बाद में ओडिशा के राज्यपाल की जिम्मेदारी भाजपा ने उन्हें सौंपी.
रघुवर दास के राज्यपाल पद से इस्तीफा देने के बाद उन्हें लेकर सियासी अटकलें लगाईं जा रही हैं.भाजपा ने 2024 में बाबूलाल मरांडी को झारखंड की कमान सौंप कर 2019 की स्थिति में सुधार लाने की कोशिश की, पर वे भी असफल हो गए. रघुवर दास इस साल हुए विधानसभा चुनाव में ही वापसी की तैयारी में थे, लेकिन भाजपा ने उन्हें मौका नहीं दिया.रघुवर की बहू उनकी पारंपरिक सीट से लड़ीं और जीत गईं. अब रघुवर के सियासी भविष्य को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया है.एक चर्चा यह भी है कि रघुवर को भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाएगी. भाजपा जिस तरह नए अचर्चित चेहरों को सामने लाती रही है, उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि रघुवर को कहीं यह जिम्मेदारी न मिल सकती है. रघुवर दास भले आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले नहीं हैं लेकिन वे नरेंद्र मोदी और अमित शाह के करीबी लोगों में माने जाते हैं.
भाजपा उन्हें उपराष्ट्रपति या राष्ट्रपति भी बना सकती है. इसके लिए अभी दो साल उन्हें इंतजार करना पड़ेगा. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 2027 में खत्म होगा. उसके बाद ही भाजपा किसी के नाम पर विचार करेगी. इतने दिनों तक रघुवर दास इंतजार नहीं करेंगे. ऐसे में इसकी संभावना कम ही दिखती है.इस साल विधानसभा चुनाव में भाजपा की शिकस्त के बाद झारखंड को लेकर पार्टी की चिंता बढ़ गई है. पार्टी ने प्रदेश नेतृत्व में बदलाव की बात भी कही है.संभव है कि मरांडी को भाजपा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए और रघुवर को झारखण्ड की कमान दे दे. रघुवर की रुचि को देखते हुए उन्हें प्रदेश की कमान सौंपी जा सकती है.