चुनाव से 7 महीने पहले BJP को बड़ी कामयाबी, JDU को बना दिया छोटा भाई.

City Post Live

सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में नीतीश कुमार की JDU अब BJP के  ‘बड़ा भाई’से छोटा भाई  बन चुकी है. 243 विधानसभा वाली सरकार में कुल 36 मंत्री हैं. पहली बार ऐसा हुआ है  कि 36 में से BJP के 21 मंत्री हैं.जेडीयू  से डेढ़ गुना ज्यादा मंत्री बीजेपी के हैं.इतना ही नहीं बीजेपी ने नीतीश कुमार के कोर वोट बैंक को भी इस मंत्रिमंडल विस्तार में साधने की कोशिश की है.JDU से बीजेपी में आनेवाले अपने कुर्मी-कोयरी समाज के दो नेताओं को मंत्री बना दिया है.मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पला बदलने की अटकलों पर पूरी तरह से ब्रेक लग गया है.‘

बिहार के विधानसभा चुनाव में महज 7 महीने बचे हैं. 4 दिन बाद बजट आना है. ऐसे में सरकार अभी मंत्रिमंडल विस्तार नहीं करती तो बजट सत्र चलने यानी अगले एक महीने तक ये काम नहीं हो पाता. इस मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही ये तय हो गया है कि, अब भले ही सीएम की कुर्सी नीतीश कुमार के पास है, लेकिन ताकत बीजेपी के हाथों में है, जिसका फायदा बीजेपी को विधानसभा चुनाव में मिल सकता है.

बिहार में पिछड़ों की आबादी 27 फीसदी है. इसमें कोईरी–कुर्मी भी आते हैं. 2000 के दशक तक ये लालू यादव का वोटबैंक थे, लेकिन इसके बाद नीतीश कुमार को सपोर्ट करने लगे. हालांकि, बीते कुछ सालों में कुर्मी तो नीतीश के साथ बने रहे, लेकिन कोईरी यानी कुशवाह दूरी बनाते नजर आए. कुशवाह बहुल औरंगाबाद में आरजेडी की जीत इस बात की पुष्टि करती है.इसकी एक बड़ी वजह ये रही है कि, नीतीश की सरकार में जितनी तवज्जो कुर्मियों को मिली, उतनी कुशवाह को नहीं मिली. इसलिए वे नेता के बजाय जाति पर शिफ्ट होना शुरू हुए. इसी वोटबैंक को अब बीजेपी एकजुट करना चाहती है.

27 फीसदी आबादी के हिसाब से पिछड़ों के 12 मंत्री कैबिनेट में शामिल कर दिए गये हैं.अभी तक जदयू से 4 और बीजेपी से 2 थे, अब बीजेपी ने इस समाज के तीन और नेताओं को शामिल कर मंत्रियों की संख्या 9 कर दी है. यह आरजेडी की सेंधमारी को रोकने और कुशवाह को बीजेपी की तरफ मोड़ने के लिए किया गया है.बिहार में अति पिछड़ा की 36 फीसदी आबादी है.ये सीएम नीतीश कुमार का वोटबैंक कहे जाते हैं. हालांकि, जेडीयू का वोट परसेंट अभी करीब 16 फीसदी है. इससे ये पता चलता है कि, ईबीसी का 20 फीसदी वोटबैंक अब भी खाली है.बीजेपी इसी वोटबैंक को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में है. अति पिछड़ा से दो विधायकों को मंत्री बनाया गया है. इस समाज से कुल 7 मंत्री बन चुके हैं, इनमें से 5 बीजेपी और 2 जदयू से हैं.

आबादी के लिहाज से देखा जाए तो नीतीश सरकार में सवर्ण मंत्रियों की संख्या दोगुना से भी ज्यादा हो गई है. हिंदू-मुस्लिम सवर्णों को मिलकर इनकी आबादी करीब 15 फीसदी है. इस हिसाब से सवर्ण जाति से 5 मंत्री बनाए जा सकते थे, लेकिन सवर्ण मंत्रियों की संख्या 12 है. इसमें 8 बीजेपी के कोटे से हैं.इसकी दो बड़ी वजह हैं. पहला, बीजेपी का कोर वोट बैंक है, जिसे पार्टी बनाए रखना चाहती है. दूसरा, विनिबिलिटी फैक्टर है. अधिकतर सवर्ण नेता धनबल और बाहुबल से मजबूत हैं. ऐसे में इनके जीतने की संभावना बढ़ जाती है.  ‘नीतीश कुमार अब पहले की तरह मजबूत नहीं रहे. इसकी एक बड़ी वजह उनकी बढती उम्र और शारीरिक कमजोरी  है. जब तक नीतीश मजबूत रहे तब तक बीजेपी कभी भी उनके आगे नहीं आ पाई. क्योंकि जब भी ऐसी कोशिशें होती थीं तो जदयू की तरफ से कड़ा प्रहार होता था लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं.

नीतीश को बीजेपी की ज्यादा जरूरत है. यदि वे बीजेपी से गठबंधन तोड़ते हैं तो उनकी पार्टी में ही इस बार टूट हो सकती है, क्योंकि उनके तमाम मंत्री भी अब दिल्ली पर ज्यादा भरोसा करते हैं. नीतीश अपने बेटे निशांत को भी यदि पॉलिटिक्स में सेट करना चाहते हैं तो उन्हें बीजेपी की मदद लेना होगी. बीजेपी के लिए नीतीश कुमार का चेहरा जरूरी है. बीजेपी के पास अभी कोई सीएम फेस नहीं है. वे नीतीश कुमार के जरिए अपना फैलाव करना चाहते हैं. ऐसे में आपसी सहमति से ही सब काम चल रहा है

Share This Article