कांग्रेस का कन्हैया कुमार पर दांव,महागठबंधन में दरार, अकेले लडेगी कांग्रेस?

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सिटी पोस्ट लाइव :  बिहार कांग्रेस की 16 मार्च से शुरू हो रही ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ यात्रा शुरू हो रही है.इस यात्रा से पहले सदाकत आश्रम में हुए संवादाता सम्मलेन में बिहार के चुनाव प्रभारी कृष्णा अलावारु के साथ कन्हैया कुमार भी नजर आये.ऐसा माना जा रहा था कि कांग्रेस की इस यात्रा को कन्हैया कुमार लीड करेगें.लेकिन कृष्णा ने साफ़ कर दिया कि ऐसा नहीं होनेवाला.कन्हैया कुमार को आगे कर कृष्णा आरजेडी को नाराज नहीं करना चाहते.कृष्णा ने तो कन्हैया  के पक्ष में “ बिहार का सीएम कैसा हो, कन्हैया कुमार जैसा हो” नारे लगानेवाले कांग्रेसियों को फटकार भी लगा दी.उन्होंने कहा कि यात्रा को भटकाने की कोशिश करनेवाले लोगों को पार्टी छोड़ेगी नहीं.

कन्हैया कुमार भी अपने सहयोगी दल आरजेडी और तेजस्वी यादव पर बार-बार सवाल पूछे जाने पर भी चुप रहे.र कन्हैया कुमार की  मौन सांकेतिक तौर पर बहुत कुछ कहती है.28 सितंबर 2021 को दिल्ली में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करने के बाद कन्हैया ने सदाकत आश्रम में अब तक महज़ तीन प्रेस कॉन्फ्रेंस की हैं.दरअसल चुनावी वर्ष में बिहार कांग्रेस ने कन्हैया की एंट्री करवा के अपने सहयोगी दल राजद और ख़ासतौर पर तेजस्वी यादव को असहज कर दिया है.ये असहजता अभी ज़ाहिर तो नहीं हो रही, लेकिन बिहार में साल की शुरुआत से ही कांग्रेस का एक्टिव होना महागठबंधन की आंतरिक राजनीति और उसके समीकरणों में बदलाव का संकेत दे रहा है.

इस वक्त बिहार की राजनीति में अगर एनडीए गठबंधन में जेडीयू और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत अहम सवाल बने हुए हैं तो महागठबंधन में कांग्रेस की ‘अतिरिक्त’ सक्रियता.साल की शुरुआत में ही पार्टी नेता राहुल गांधी दो बार पटना आ चुके हैं. के बाद कांग्रेस पार्टी में एक सीरिज़ ऑफ इवेंट्स दिखता है जिसका मक़सद ज़मीनी स्तर पर कांग्रेस को मज़बूत करना है.पार्टी ने 14 फ़रवरी 2025 को बिहार में कांग्रेस का प्रभारी कृष्णा अल्लावरू को बनाया.कृष्णा अल्लावरू युवा कांग्रेस के भी प्रभारी हैं और उन्होंने सदाकत आश्रम में अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, “घोड़े दो तरह के होते हैं. शादी में जाने वाले और रेस वाले. कांग्रेस अब रेस वाले घोड़े पर दांव लगाएगी.”फ़रवरी महीने में ही अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अलका लांबा भी पटना आई थीं.

16 मार्च से पश्चिमी चंपारण स्थित भितिहरवा आश्रम से कांग्रेस ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ यात्रा निकाल रही है. पार्टी ने कन्हैया कुमार को इस यात्रा का लीड चेहरा स्पष्ट तौर पर घोषित नहीं किया है. लेकिन कन्हैया इस यात्रा का अहम क़िरदार होंगे.ये यात्रा 24 दिन की होगी जिसमें दो बार राहुल गांधी के आने की ख़बर है. गौरतलब है कि अगर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का एजेंडा देखें तो उसमें भी पलायन और नौकरी का मुद्दा अहम है.ऐसे में अलग से यात्रा क्यों, इस सवाल पर कन्हैया कहते हैं, “इन मुद्दों पर जितनी यात्राएं निकाली जाएं उतना अच्छा है. बाकी ये चुनावी यात्रा नहीं बल्कि पद यात्रा है. राजद को लेकर लग रहे कयासों का कोई मतलब नहीं है.”

कन्हैया कुमार इस सवाल को अंडरप्ले कर रहे हैं लेकिन बिहार की पॉलिटिक्स को नज़दीक से देखने समझने वाले कन्हैया के प्रति तेजस्वी यादव की असहजता को स्वीकार करते हैं.बेगूसराय से सीपीआई के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद कन्हैया ने कांग्रेस ज्वाइन की थी. लेकिन वो बिहार में बतौर कांग्रेसी नेता कभी एक्टिव नहीं हुए, बल्कि उनके साथ मंच शेयर करने में तेजस्वी की असहजता ख़बर बनती रही.साल 2020 में बेगूसराय में कन्हैया ने चुनाव लड़ा तो राजद ने तनवीर हसन को भी मैदान में उतारा था. मई 2023 में पटना में आयोजित प्रज्ञापति सम्मेलन में कन्हैया के शामिल होने पर मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाए गए तेजस्वी यादव ने इस कार्यक्रम से दूरी बना ली थी.

“बिहार में कांग्रेस अब ‘ओल्ड गार्ड्स’ की बजाए नौजवान चेहरा चाहती है और राजद के साए से भी बाहर निकलना चाहती है. कन्हैया का अब तक बिहार कांग्रेस ने इस्तेमाल ही नहीं किया है. राजद में कन्हैया को लेकर एक तरह का ‘क्लैश ऑफ इंटरेस्ट’ है, लेकिन कांग्रेस को अपनी स्वतंत्र छवि बनाने के लिए ये करना होगा.”बिहार कांग्रेस की नाव, मंडल राजनीति और 1990 में लालू प्रसाद यादव यानी राजद की सरकार बनने के बाद डगमगाई. 1990 से पहले बिहार में ज़्यादातर समय कांग्रेस ही सत्तासीन रही, लेकिन राजद के उभार के बाद पार्टी सिमटती गई.साल 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने कांग्रेस को 70 सीटें दी थीं. जिसमें पार्टी ने महज़ 19 सीटों पर जीत हासिल की थी. महागठबंधन की सरकार नहीं बन पाने की एक वजह कांग्रेस का परफ़ॉरमेंस माना गया था.कांग्रेस नेता मानते हैं कि पार्टी के जनाधार के मुताबिक सीटें नहीं देने की वजह से ऐसा हुआ. अबकी बार केन्द्रीय कांग्रेस ने तीन कंपनियों को बिहार में विधानसभा वार सर्वे का काम दिया है जिन्होंने 100 सीटों पर पार्टी से काम करने को कहा है.सूत्रों के अनुसार  तेजस्वी कांग्रेस को 50 सीटें देगें. भाकपा (माले) की सीट 25 से 30 होगी. भाकपा (माले) ने साल 2020 में 19 सीट लड़ी थी और 12 पर जीत दर्ज की थी.लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने आरा और काराकाट लोकसभा पर फ़तह हासिल की थी. भाकपा (माले) की सीटें बढ़ाने का एक फायदा ये भी है कि लेफ्ट पार्टियां सरकारों में शामिल नहीं होती.

कांग्रेस की सीटें कम होने और मनचाही सीट नहीं मिलने की स्थिति में पार्टी साल 2010 के विधानसभा चुनावों जैसे अकेले भी चुनाव लड़ सकती है, जिसमें पार्टी को महज़ 4 सीटें मिली थीं.ऐसे में सवाल है कि इस स्थिति में क्या नुकसान या फायदा सिर्फ महागठबंधन का होगा? बीजेपी चाहती है कि आरजेडी  और कांग्रेस साथ लड़ें. अगर कांग्रेस अलग लड़ेगी तो नुकसान पार्टी (बीजेपी) को होगा.दरअसल कांग्रेस के आधार वोट में सवर्ण वोटर शामिल हैं, जो बीजेपी का भी कोर वोटर है. ये वोटर राजद के साथ चुनाव लड़ने पर कांग्रेस से छिटकते हैं वहीं अकेले लड़ने पर गोलबंद भी होते हैं.कांग्रेस अगर अकेले लड़ी तो वो बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगी और प्रशांत किशोर को न्यूट्रलाइज़ करेगी. लेकिन फिलहाल ऐसा लगता नहीं है कि कांग्रेस अकेले लड़ेगी. कांग्रेस लालू के साथ रहेगी लेकिन पहले जैसे खुद को डिक्टेट नहीं होने देगी. वहीं कन्हैया एक्टिव होंगे तो अपने लिए नया स्पेस क्रिएट करेंगे, अपर कास्ट वोटरों और दलितों को कुछ हद तक गोलबंद करेंगे.

इमेज स्रोत,Getty Images कांग्रेस का आधार वोट सवर्ण के साथ साथ दलित और मुसलमान रहे हैं. बिहार के जातिगत सर्वे के मुताबिक राज्य में 17.70 फ़ीसदी मुसलमान हैं. साल 2015 से मुसलमानों का जो वोटिंग पैटर्न दिख रहा है उसमें मुसलमान आक्रामक तरीके से उस कैंडीडेट को वोट कर रहे हैं जो बीजेपी को हरा सके. इसलिए आप देखें तो बीते चुनाव में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार जेडीयू से भी नहीं जीता.साल 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था लेकिन एक भी जीत दर्ज नहीं कर सका. इस वक्त कैबिनेट में ज़मा ख़ान मुस्लिम प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, लेकिन वो बसपा से जीतकर जेडीयू में शामिल हो गए थे

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