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नरेंद्र मोदी की गठबंधन सरकार की चुनौतियाँ ?

71 मंत्रियों वाली कैबिनेट चलाने में क्या होंगी चुनौतियां, पढ़िए श्रीकांत प्रत्यूष का राजनीतिक विश्लेषण .

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सिटी पोस्ट लाइव : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की  72 सदस्यों वाली मंत्री परिषद में 30 कैबिनेट मंत्री, 5 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 36 राज्य मंत्री शामिल किए गए हैं.भारतीय जनता पार्टी के पास अब अकेले अपने दम पर बहुमत नहीं है. बीजेपी के सामने अपने गठबंधन सहयोगियों को संतुष्ट करने की चुनौती हैं. सत्ता का केंद्रीकरण करके सरकार चलाने के आदी प्रधानमंत्री  गठबंधन सहयोगियों को  कैसे साधेंगे, ये अभी देखना बाक़ी है. गठबंधन सरकार में तेलुगू देशम पार्टी, जनता दल युनाइटेड, शिवसेना (शिंदे गुट), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), जनता दल सेक्यूलर, राष्ट्रीय लोक दल, हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा (हम), द रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया को मिलाकर कुल 11 मंत्री भी हैं. हमेशा एकाधिकार वाली सरकार चलानेवाले मोदी किस तरह से गठबंधन की सरकार चलायेगें, ये सबसे बड़ा सवाल है.

 

 मोदी की नई सरकार में 27 मंत्री अन्य पिछड़ा वर्ग, 10 मंत्री अनुसूचित जातियों, 5 अनुसूचित जनजातियों और 5 अल्पसंख्यक समूहों से हैं. हालांकि भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह यानी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सरकार में नहीं है. नई सरकार में एक भी मुसलमान मंत्री नहीं है.केंद्र सरकार के मंत्रियों ने अभी सिर्फ़ शपथ ली है, उन्हें पोर्टफ़ोलियो नहीं दिए गए हैं. आमतौर पर शपथ ग्रहण के 48 घंटों के भीतर विभाग बांट दिए जाते हैं.इस बार बीजेपी के पास अपने दम पर बहुमत नहीं है और वह सरकार चलाने के लिए गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर है, ऐसे में माना जा रहा है कि गठबंधन सहयोगी अपनी पसंद के विभाग लेने के लिए बीजेपी पर दबाव बना सकते हैं.

 

नरेंद्र मोदी की ये नई सरकार गठबंधन सहयोगियों पर टिकी है, जिसे सदन में मज़बूत विपक्ष का भी सामना करना है.  नरेंद्र मोदी एकाधिकार का शासन चलाते रहे हैं और एकतरफ़ा फ़ैसले लेते रहे हैं, देखना यह होगा कि मोदी गठबंधन सहयोगियों के साथ कितने सहज रहते हैं. पूर्ण बहुमत की सरकार और गठबंधन सरकार के चरित्र में फर्क होता है. बीजेपी के सामने सभी सहयोगियों को जगह देने की मजबूरी है. विभागों के बंटवारे से ही स्पष्ट होगा कि सरकार कितनी स्थिर रहेगी.पिछली सरकारों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी जैसे कई बड़े फ़ैसले लिए. विश्लेषक मानते हैं कि अपनी मर्ज़ी से सरकार चलाते रहे नरेंद्र मोदी ख़ुद को गठबंधन की निर्भरता के हिसाब से ढाल पाएंगे या नहीं, यही सबसे अहम है.

 

 अब सवाल यही है कि क्या मोदी अपनी मर्ज़ी चलाये बिना सरकार चला पाएंगे? अब तक नरेंद्र मोदी की सरकारों में बाक़ी मंत्री उनके कहे पर चलते थे. लेकिन विश्लेषक मान रहे हैं कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गठबंधन सहयोगियों के दख़ल के साथ भी तालमेल बिठाना पड़ेगा.प्रधानमंत्री मोदी की छवि एक सशक्त नेता की रही है, वो अपनी नीतियों को लागू करवाने के लिए जाने जाते हैं.लेकिन इसबार  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास अब ना संख्या बल है और ना नैतिक बल है. मोदी जी अच्छे वक्ता हैं. 2014 और 2019 में यही मोदी की सबसे बड़ी ताक़त थी, लेकिन इस नई सरकार में यही उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी साबित होगी.”अब मंच से जो भी वो बोलेंगे उसे ज़मीनी वास्तविकता की कसौटी पर परखा जाएगा, वादों का हिसाब मांगा जाएगा. अपनी कही बातों पर खरा उतरना ही उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी.”

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