भूमिहारों के गढ़ में फिर खिलेगा ‘कमल’?

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सिटी पोस्ट लाइव : बेगूसराय की लोकसभा सीट हमेशा की तरह इस बार भी हॉट बनी हुई है. यहां से पिछला चुनाव भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता गिरिराज सिंह ने जीता था. पिछली बार यहां से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर कन्हैया कुमार ने यहां चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी. साल 2019 के चुनाव में बीजेपी के गिरिराज सिंह को 692,193 वोट मिले थे. वहीं, सीपीआईएम के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले कन्हैया कुमार 269,976 वोटों की प्राप्ति हुई थी. इस चुनाव में राजद ने तनवीर हसन को चुनावी मैदान में उतारा था, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था. लेकिन गिरिराज सिंह इस चुनाव को भारी मतों के अंतर से जीत गए.

साल 1971 के चुनाव को श्यामनंदन मिश्र (कांग्रेस) जीते. इसके बाद 1977 के चुनाव में श्यामनंदन मिश्र जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और विजयी हुए. 1980 और 1984 के चुनाव में कृष्णा शाही ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद 1989 में जनता दल, 1991 में कांग्रेस, 1996 में सीपीआई और 1998 में कांग्रेस उम्मीदवार विजयी रहे. इसके बाद 2004 में जदयू के टिकट पर राजीव रंजन सिंह ललन चुनाव लड़े और जीत हासिल की. 2009 के चुनाव को जदयू उम्मीदवार मोनाजिर हसनने जीता. 2014 के चुनाव में बीजेपी के भोला सिंह विजयी रहे. 2019 के चुनाव में बीजेपी के दिग्गज नेता गिरिराज सिंह ने चुनाव में जीत हासिल की.2009 के  परिसीमन से पहले की बेगूसराय लोकसभा सीट के चुनाव आंकड़ों पर नजर डालें तो कांग्रेस का ही दबदबा नजर आता है. साल 1952 और 1957 के चुनाव में मथुरा प्रसाद मिश्र (कांग्रेस) विजयी रहे थे. वहीं 1967 के चुनाव को सीपीआई के योगेंद्र शर्मा ने जीता.

बेगूसराय के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर सबसे अधिक भूमिहार मतदाता हैं. इसके बाद मुस्लिम वोटर्स हैं, जो कि ढाई लाख से अधिक हैं. इसके अलावा कुर्मी-कुशवाहा और अन्य ओबीसी जाति के वोटर्स भी दो लाख से ज्यादा है. क्षेत्र में ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ समुदाय के वोटर्स भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

बेगूसराय जिले के अंदर सात विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें बेगूसगूराय, बछवाड़ा, तेघड़ा, मटिहानी, साहेबपुरकमाल, चेरियाबरियारपुर व बखरी शामिल हैं. इस बार भी इस सीट से बीजेपी के प्रत्याशी के रूप में गिरिराज सिंह का दावा मजबूत है. गिरिराज सिंह की गिनती प्रदेश के दिग्गज भूमिहार नेताओं में होती है. हालांकि, स्थानीय लोगों में इस बात को लेकर नाराजगी भी है कि उनकी क्षेत्र में सक्रियता कम रहती है.

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