बिहार, आंध्र को मिलेगा विशेष दर्जा?

सिटी पोस्ट लाइव : दिल्ली में हुई  JDU की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पारित एक प्रस्ताव के चलते राज्यों को स्पेशल कैटिगरी देने का मुद्दा फिर गर्म हो गया है. पिछड़ेपन, ज्यादा आदिवासी आबादी और कम राजस्व का हवाला देकर बिहार, ओडिशा और आंध्र प्रदेश सहित कई राज्य लंबे समय से स्पेशल स्टेटस की मांग करते रहे हैं. 14वां फाइनैंस कमिशन काफी पहले यह सलाह दे चुका है कि इस कैटेगरी में अब किसी राज्य को न जोड़ा जाए और पिछले कार्यकाल तक मोदी सरकार भी इसी का हवाला देकर मांग ठुकरा रही थी, लेकिन अब वह JDU और आंध्र की TDP के समर्थन पर टिकी है, लिहाजा स्पेशल स्टेटस का मुद्दा ट्रिकी हो गया है क्योंकि इसी मुद्दे पर आंध्र के मौजूदा सीएम चंद्रबाबू नायडू 2018 में NDA से अलग हो गए थे.

 

स्पेशल कैटिगरी स्टेटस का किस्सा आजादी के बाद के दूसरे दशक में शुरू हुआ, जब केंद्र सरकार ने महसूस किया कि विकास की दौड़ में पिछड़ रहे कुछ राज्यों को सहारा देना होगा. योजना आयोग के उपाध्यक्ष डी आर गाडगिल के फॉर्मूले पर स्पेशल कैटिगरी स्टेटस की व्यवस्था की गई. इसमें पहाड़ी राज्यों, ज्यादा आदिवासी आबादी वाले राज्यों, सीमावर्ती राज्यों, आर्थिक और बुनियादी ढांचे के लिहाज से पिछड़े राज्यों और ऐसे राज्यों पर विचार किया गया, जो अपने लिए पर्याप्त राजस्व की व्यवस्था न कर पाते हों. शुरू में जम्मू कश्मीर, असम और नागालैंड को दर्जा मिला. अभी उत्तराखंड, अरुणाचल, हिमाचल, सिक्किम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा सहित 11 राज्य इस लिस्ट में हैं.

 

स्पेशल कैटिगरी वाले राज्यों को केंद्र से ज्यादा वित्तीय मदद मिलती है. इन राज्यों में केंद्रीय योजनाओं के लिए 90% फंड केंद्र देता है और 10% फंड ही राज्य को देना होता है. बचा हुआ फंड अगले साल भी इस्तेमाल कर सकते हैं. दूसरे राज्यों में यह रेशियो 60:40 का होता है. विशेष दर्जे वाले राज्यों को कुछ प्रोजेक्ट्स में अलग से भी मदद मिलती है., ‘सोशल इकनॉमिक डिवेलपमेंट के पैमानों पर बिहार, बंगाल या ओडिशा की मांग जायज है. जहां तक आंध्र प्रदेश का मामला है तो उसे सबसे ज्यादा राजस्व हैदराबाद से मिलता था और वह उसके हाथ से चला गया, लिहाजा उसे स्पेशल स्टेटस की जरूरत है.

 

आंध्र पिछड़ा नहीं है. विभाजन के बाद तेलंगाना को मदद की जरूरत ज्यादा है. बंगाल, ओडिशा, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना भी विशेष दर्जे की मांग करते रहे हैं. अब गठबंधन के दबाव को देखते हुए मोदी सरकार स्पेशल पैकेज के जरिए बीच का रास्ता निकाल सकती है, क्योंकि जेडीयू ने अपने प्रस्ताव में स्पेशल स्टेटस या स्पेशल पैकेज की बात कर इसका संकेत दे दिया है. TDP भी स्पेशल स्टेटस के बजाय स्पेशल पैकेज पर फोकस कर रही है क्योंकि चुनावी वादे पूरे करने के लिए उसे जल्द बड़ी रकम की जरूरत है.

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