जातीय गणना का जात की सियासत में क्या होगा असर

 

सिटी पोस्ट लाइव :बिहार सरकार ने बहुप्रतीक्षित जाति आधारित गणना की रिपोर्ट को जारी कर दिया है. जातीय सर्वे सार्वजनिक होने के बाद बिहार की राजनीति पर इसका दूरगामी असर पड़ेगा.आने वाले चुनाव और ज्यादा  जाति केंद्रित हो सकते हैं.आनेवाले दिनों में राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर भी इसका असर पड़ सकता है. खासकर सवर्णों के प्रतिनिधित्व इसका असर देखने को मिल सकता है.

 

जाति आधारित गणना की रिपोर्ट में  सवर्णों में राजनीतिक रूप से सर्वाधिक सबल भूमिहार जनसंख्या के हिसाब से तीसरे नंबर  पर हैं. उनकी संख्या 2.86 है. उनसे अधिक जनसंख्या ब्राह्मणों व राजपूतों की है.1931 में भूमिहारों की जनसंख्या 2.9 प्रतिशत हुआ करती थी. हालांकि, तब बिहार और उड़ीसा संयुक्त प्रांत थे. इन वर्षों में इस समाज की जनसंख्या में कोई अप्रत्याशित परिवर्तन नहीं हुआ है.

 

बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह से लेकर वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा तक राजनीति में भूमिहार समाज का शुरू से ही प्रभुत्व रहा है. इसका कारण उसकी बौद्धिक-मानसिक चेतना है.बिहार भाजपा के पितामह कहे जाने वाले कैलाशपति मिश्र भी भूमिहार समाज से आते थे. अभी कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह व इसके युवा तुर्क कन्हैया कुमार भी इसी वर्ग से हैं.सर्वाधिक सक्रिय तीन वामदलों में से भाकपा के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय और भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल भी इस वर्ग के प्रतिनिधि चेहरा हैं.

 

सवर्णों की जनसंख्या में जो वृद्धि दिख रही है, वह मुसलमानों में शेख, सैयद, पठान की संख्या जो जोड़ देने के कारण है. हिंदू सवर्णों की कुल जनसंख्या में वर्ष 1931 की तुलना में अपेक्षाकृत कमी आई है.अभी 3.65 प्रतिशत ब्राह्मण और 3.45 प्रतिशत राजपूत हैं, जो वर्ष 1931 में क्रमश: 4.7 और 4.2 हुआ करते थे. हिंदू सवर्णों में सबसे कम जनसंख्या कायस्थ समाज की है. 1931 में वे 1.2 प्रतिशत थे और अब घटकर 0.60 प्रतिशत रह गए हैं.

Bihar Caste Based Census Report