BJP के 8 सांसदों का कट सकता है टिकेट, नए लोगों को मौका.

सिटी पोस्ट लाइव :बिहार बीजेपी के आधा दर्जन से ज्यादा सांसदों का टिकेट कट सकता है.सूत्रों के अनुसार बीजेपी इस बार अपने 8 सिटिंग सांसदों का टिकट काट सकती है. इनमें तीन केंद्र के मौजूदा मंत्री भी शामिल हैं. पार्टी सूत्रों के मुताबिक, 5 सांसदों की उम्र उनके लिए रोड़ा बन सकता है. जबकि परफॉर्मेंस के आधार पर  3 सांसदों का टिकेट कट सकता है. पार्टी ने अभी से इनके विकल्प की तलाश  शुरू कर दी है.बीजेपी सूत्रों की माने तो पार्टी एंटी इनकंबेंसी को कम करने और उम्र के पैमाने को आधार बना कर आधे से ज्यादा सिटिंग सांसदों का टिकट काट सकती है.

 2019 में एनडीए ने 40 में से 39 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसमें अकेले बीजेपी ने 17 सीटें जीती थी. तब नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा थे, लेकिन इस बार वे महागठबंधन के साथी हैं. अब बीजेपी नीतीश के बिना बिहार में बेहतर प्रदर्शन करना चाहती है.पुराने पहलवानों के बूते ये संभव नहीं है.मोतिहारी में बीजेपी के मजबूत स्तंभ माने जानेवाले राधा मोहन सिंह उम्र ज्यादा होने की वजह से मैदान से बाहर हो सकते हैं.सिंह फिलहाल 74 साल के हैं और अगले साल 75 साल के हो जाएंगे.राधा मोहन सिंह के विकल्प के रूप में राणा रंधीर सिंह के नाम की चर्चा सबसे ज्यादा है. रंधीर फिलहाल पूर्वी चंपारण के मधुवन से विधायक हैं. बिहार सरकार में सहकारिता मंत्री रह चुके हैं. पिता सीताराम सिंह शिवहर से सांसद रह चुके हैं. ऐसे में इनका दावा मजबूत माना जा रहा है.

74 साल की रमा देवी तीन बार बीजेपी के टिकट पर शिवहर से जीतते आई हैं. लेकिन बीजेपी के 75 साल का पैमाना इस बार उनका खेल बिगाड़ सकता है. बीजेपी में इनका टिकट कटना भी तय माना जा रहा है. इस बार इन्हें भी मार्गदर्शक मंडल में भेजा जा सकता है. इनकी जगह कौन लेगा अभीतक तय नहीं है.महागठबंधन की तरफ से यहाँ से आनंदमोहन की पत्नी पूर्व सांसद लावली आनंद मैदान में उतर सकती हैं.

अश्विनी चौबे पार्टी के पुराने सिपाही हैं. पिछले 5 दशक से ज्यादा समय से बीजेपी के साथ जुड़े हुए हैं. इनका इस बार मार्गदर्शक मंडली में जाना तय माना जा रहा है.70 के पार होना इनकी टिकट की राह में सबसे बड़ी बाधा है. चौबे फिलहाल 70 साल के हैं और आम चुनाव से पहले ये 71 साल के हो जाएंगे. रिटायरमेंट से पहले ये अपने बेटे अर्जित शाश्वत को राज्य की सियासत में सेट करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे दो बार विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं.

मनोज तिवारी अभी दिल्ली के सांसद हैं. वो कई बार पार्टी फोरम पर बक्सर से चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं. इस बार मनोज तिवारी अभी से ही वहां फील्डिंग करना शुरू कर दी है. चर्चा है कि वे चुनाव से पहले वहां धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के कार्यक्रम का आयोजन भी करवा सकते हैं. इसके अलावा बिहार सरकार के पूर्व मंत्री मंगल पांडेय भी बक्सर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रह रहे हैं.

आरके सिंह की गिनती भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के भरोसेमंद नेताओं के रूप में होती है. इन्हें इनके बेहतर छवि और और रिकॉर्ड के आधार पर पार्टी में शामिल कराया गया था. गृह सचिव के पद से रिटायर होने के बाद 2014 में पहली बार सिंह आरा लोकसभा से चुनाव लड़े थे और जीत भी गए. इसके बाद 2019 भी जीते। 2017 से लगातार मंत्री हैं.कैबिनेट में इन्हें पहले राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार दिया गया. फिर केंद्रीय मंत्री बनाया गया। काम की बदौलत आरा में इनकी लोकप्रियता भी है, लेकिन उम्र इनकी राह में रोड़ा बन रहा है. सिंह की उम्र फिलहाल 71 साल है, चुनाव से पहले ये 72 साल के हो जाएंगे. ऐसे में इनके टिकट कटने की भी चर्चा है.क्षेत्र में चल रही चर्चा की माने तो आरके सिंह इतनी आसानी से नहीं मानने वाले हैं. दूसरी तरफ पवन सिंह आरा सीट से चुनाव लड़ने की लालच में ही पार्टी में शामिल हुए हैं.आरा की पूर्व सांसद मीना सिंह अपने बेटे विशाल सिंह के साथ भाजपाई हो गई हैं. तीनों राजपूत जाति के हैं. टिकट किसे मिलने वाला है कोई नहीं जनता.

गिरिराज सिंह की गिनती भाजपा में भूमिहार के दिग्गज नेता के रूप में होती है. इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कट्टर समर्थक भी कहा जाता है. इन्होंने कभी भी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा. इसके बाद भी 2008 से 2013 तक नीतीश कैबिनेट में भाजपा कोटे से मंत्री बने रहे.2014 में नरेंद्र मोदी जब केंद्र में आए तो पहले इन्हें नवादा फिर बेगूसराय से टिकट दिया गया. दोनों ही बार चुनाव जीते और कैबिनेट मंत्री बने. अब 70 पार की उम्र के कारण इनका टिकट कटना तय माना जा रहा है.गिरिराज सिंह की तरह राकेश सिंह भी संघ के करीबी माने जाते हैं. भूमिहार जाति के हैं. फिलहाल राज्यसभा के सदस्य हैं. बीजेपी के स्कॉलर चेहरे में इनकी गिनती होती है. पिछले 2 साल से बेगूसराय में फिल्डिंग कर रहे हैं. धरना-प्रदर्शन से लेकर पार्टी की हर छोटी बड़ी एक्टिविटी में शामिल हो रहे हैं. ऐसे में इस बार इनका नाम बेगूसराय से फाइनल माना जा रहा है.

पटना साहिब बीजेपी की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है. शत्रुघ्न सिन्हा के बागी होने पर पिछली बार पार्टी की तरफ से यहां से वरिष्ठ नेता रवि शंकर प्रसाद को कैंडिडेट बनाया था. सियासी हलकों में चर्चा है कि इस बार उन्हें दोबारा कैंडिडेट नहीं बनाया जा सकता है. कारण पर पार्टी के ही कई नेता कहते हैं कि इन्हें यूं ही तो मंत्री पद से नहीं हटाया गया होगा. इसके अलावा इनके परफॉर्मेंस को भी आधार बनाया जा सकता है.

2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से रविशंकर प्रसाद के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता आरके सिन्हा को भी टिकट मिलने की चर्चा थी. आखिरी समय में वे पिछड़ गए और रविशंकर प्रसाद बाजी मार लिए. अब चुनाव से पहले आरके सिन्हा के बेटे और भाजपा के राष्ट्रीय सचिव ऋतु राज सिन्हा एक्टिव हो गए हैं. सिन्हा फिलहाल पार्टी के राष्ट्रीय सचिव हैं और अमित शाह के करीबी माने जाते हैं. इनके साथ बांकीपुर के विधायक और पूर्व मंत्री नितिन नवीन के नाम की भी चर्चा है.

राजीव प्रताप रूढ़ी की गिनती भाजपा के तेज तर्रार और युवा नेता के रूप में होती है. 2014 में सारण से जीतने के बाद इन्हें कौशल विकास राज्य मंत्री बनाकर पीएम ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट स्किल इंडिया की जिम्मेदारी दी थी. बाद में इन्हें कैबिनेट से आउट कर दिया गया.। अब भाजपा के इंटरनल सर्वे में इनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की बात सामने आ रही है. पार्टी से इतर ये अपनी एक अलग अखिल बिहार यात्रा निकाल रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार सारण से बीजेपी उन्हें अपना उम्मीदवार नहीं बना रही है. गाहे-बगाहे रूढ़ी भी अपने बयान से बागी तेवर जाहिर कर चुके हैं.विकल्प- इनकी जगह महाराजगंज के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को सारण शिफ्ट किया जा सकता है.

बीजपी के इंटरनल सर्वे में दरभंगा  सांसद गोपाल जी ठाकुर के खिलाफ नाराजगी की बात सामने आ रही है. इन्हें पिछले बार ही उन्हें यहां से उम्मीदवार बनाया था. लगभग 2 लाख वोट से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. अब इंटरनल सर्वे के आधार पर इनका नाम कटने की बात भी कही जा रही है.गोपाल जी ठाकुर का पत्ता कटने के पीछे एक वजह मुकेश सहनी को भी माना जा रहा है. एनडीए में शामिल होने के लिए सहनी पार्टी नेतृत्व से दरभंगा सीट की मांग कर रहे हैं. साथ ही बीजेपी दरभंगा से किसी बड़े चेहरे को उतारने की तैयारी कर रही है. गोपाल जी ठाकुर से पहले कीर्ति आजाद वहां से बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ते रहे हैं.

नीतीश मिश्रा फिलहाल मधुबनी के झंझारपुर से विधायक हैं. वे लगातार तीसरी बार यहां से जीते हैं. बिहार के दिग्गज सियासी परिवार से ताल्लुक रखते हैं. इनके पिता जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इस बार अगर दरभंगा की सीट बीजेपी के कोटे में आती है तो नीतीश मिश्रा को टिकट मिलना तय माना जा रहा है. उन्होंने अभी से इसकी तैयारी शुरू कर दी है.

पिछले 10 साल से पटना के पाटलिपुत्र से रामकृपाल यादव जीतते आ रहे हैं. आरजेडी से बीजेपी में आने के बाद उन्होंने दो बार यहां से लालू यादव की बेटी मीसा यादव को पटखनी दी है. इसका इनाम उन्हें केंद्रीय राज्यमंत्री के रूप में मिला था. लेकिन सत्ता के नए समीकरण में बीजेपी को ये सीट फंसती हुई दिख रही है.2019 के चुनाव में बीजेपी लगभग सभी सीटों को 1 लाख से ज्यादा मार्जिन से जीती है, लेकिन पाटलिपुत्र एक मात्र ऐसी सीट है, जहां से रामकृपाल यादव मात्र 39 हजार वोट से जीते थे. यानी जीत की मार्जिन बेहद ही कम थी. ऐसे में पार्टी रामकृपाल यादव को तीसरी बार टिकट नहीं देने पर विचार कर रही है.बीजेपी बिहार में अब तक दो राउंड सर्वे करा चुकी है. इस सर्वे में कई सीटों पर मुकाबला की बात सामने आ रही है. 10 सीटों को कमजोर आंका गया है.

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