5 राज्यों के चुनाव में कास्ट सर्वे का होगा असली टेस्ट.

पांच राज्यों में बजा चुनावी बिगुल, PM मोदी के खिलाफ नीतीश के जातीय जनगणना का लिटमस टेस्ट.

 

सिटी पोस्ट लाइव : जातीय जनगणना बिहार में हुई है लेकिन इसका असर देश की सियासत पर पड़ रहा है.राजनीतिक पंडितों का मानना है कि जातीय सर्वे की शुरुआत भले बिहार ने की, पर इसका लिटमस टेस्ट मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ समेत 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में होगा. 230 सीटों वाले मध्य प्रदेश विधानसभा, 200 सदस्यों वाली राजस्थान विधानसभा, 90 विधायकों वाला छत्तीसगढ़, 119 सदस्यों वाली तेलंगाना और 40 सदस्यों वाली मिजोरम में विधानसभा का कार्यकाल जनवरी में खत्म हो रहा है.

 

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने सभी पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा कर दी है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में एक चरण में वोटिंग होनी है तो छत्तीसगढ़ में दो चरणों में वोट डाले जाएंगे. 3 दिसंबर को सभी पांच राज्यों के चुनावों के रिजल्ट जारी होंगे.दरअसल, बिहार जातीय सर्वे के बाद  कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक सोंच बदल गई है.कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने भी जातीय सर्वे की अहमियत स्वीकार कर ली है.उन्होंने अपने सभी मुख्यमंत्री और वरीय नेताओं तक को सर्वे की जरूरत और उसके हक में आक्रामक तेवर दिखाने का निर्देश दे दिया है.

 

राहुल गांधी ने तो RJD सुप्रीमो लालू यादव के फ़ॉर्मूले को ही अपना लिया है.जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का माला वो जपने लगे हैं.बिहार में हुई जातीय सर्वे के बाद कई राजनीतिक आकांक्षा हिलोरें मारने लगी है.सबसे ज्यादा असर पिछड़ा, अतिपिछड़ा और दलित समाज पर पड़ा है.अगड़ों के बरक्स लगभग 85 प्रतिशत वोटों ने राजनीतिक धारा मोड़ दी है. अब राष्ट्रीय दल हों या क्षेत्रीय दल इनकी निगाहें इन तीन वर्गों के वोट बैंक पर टिकी हैं. नतीजतन आगामी पांच राज्यों के चुनाव के चुनाव में दलों के मैनिफेस्टो बदलेंगे, वादों का एक नया साम्राज्य खड़ा किया जाएगा .इन तीन खास वर्गो के नेताओं को सामने लाने की कोशिश होगी. यह दीगर की आगामी पांच राज्यों के चुनाव में पुराने मिथक टूटेंगे कोई नया मिथक तैयार होगा, यह देखना अभी बाकी है.

 

हालांकि बीजेपी सवर्ण और बनिए की राजनीति से काफी आगे बढ़ गई है. अब यहां भी अतिपिछड़ा और पिछड़ा को भरपूर जगह देकर हिंदू मतों को एक करने की कोशिश की गई है. बाबजूद जातीय सर्वे ने हिस्सेदारी को लेकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. बीजेपी इस सर्वे को हिंदू और मुस्लिम के  साधने की कोशिश शुरू कर दी है. सबका साथ, सबका विश्वास के नारों के बीच पसमांदा मुस्लिम पर विशेष नजर है. भाजपा का यह प्रयोग उत्तर प्रदेश में काफी सफल हुई है. पर खास तौर पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के साथ तेलंगाना और मिजोरम में क्या प्रभाव पड़ेगा, देखना होगा.

 

देश की मौजूदा राजनीति को देखें तो एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच ओबीसी वोटरों को अपने पाले में करने की होड़ है. इंडिया गठबंधन के नेता खासकर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव भलीभांति समझते हैं कि हिंदी प्रदेशों में जब तक ओबीसी वोटर इंडिया गठबंधन के साथ नहीं आएंगे तब तक जीत की परिकल्पना बेमानी है. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने जातीय सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक करके ओबीसी वोटरों को अपने साथ खींचने का प्रयास किया है. कांग्रेस भी ओबीसी वोटरों की ताकत को समझ रही है. इसलिए राहुल गांधी सरीखे नेता जातीय सर्वे के साथ महिला आरक्षण में ओबीसी महिलाओं के लिए अलग आरक्षण जैसी बातें कर रहे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे पर करीब 40 फीसदी ओबीसी वोट एनडीए के खाते में जाने का दावा किया जाता है. इंडिया गठबंधन जातीय सर्वे के जरिए एनडीए गठबंधन से ओबीसी वोटबैंक को खींचने के प्रयास में है.

 

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में BJP भारी बहुमत से सभी राज्यों में सरकार बनाएगी और 5 साल तक जनाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कटिबद्ध भाव से काम करेगी.कांग्रेस ने दावा किया है कि पांचों राज्यों – छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिज़ोरम – में पार्टी जनता के विश्वास और समर्थन के बूते भारी बहुमत से जीत दर्ज करेगी. पार्टी ने यह भी कहा कि यह जीत किसानों, मज़दूरों, युवाओं, महिलाओं के अधिकारों की जीत होगी.

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