इंडिया गठबंधन में ” रनरअप फॉर्मूले” पर सीट बटवारे  की बात.

सीट बंटवारे के लिए 2019 चुनाव के प्रदर्शन को आधार बनाकर रनरअप फॉर्मूले पर सीट बटवारे  की बात.

सिटी पोस्ट लाइव : विपक्षी दलों ने ऐसी 450 सीटें चिह्नित कर ली हैं जहां साझा उम्मीदवार उतारने की तैयारी है. विपक्षी गठबंधन में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला क्या होगा? इसे लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.  सीट शेयरिंग फॉर्मूले को लेकर ये भी कहा जा रहा है कि इसके लिए विपक्षी दल 2019 के चुनाव परिणाम को आधार बनाने की तैयारी में हैं.चर्चा  हैं कि सीट बंटवारे के लिए 2019 चुनाव के प्रदर्शन को आधार बनाकर रनरअप फॉर्मूले पर सीट बटवारे  की बात चल रही है. राज्य, दल से ऊपर उठकर विपक्षी पार्टिया इस फॉर्मूले पर आगे बढ़ सकती हैं कि 2019 में जो पार्टी जो सीटें जीती थी, वो सीटें उसे दी ही जाएं. साथ ही जिन सीटों पर जिस पार्टी के उम्मीदवार दूसरे पर रहे थे, वो सीटें भी उसी पार्टी को दी जाएं.

सवाल ये भी खड़े हो रहे हैं कि सीट शेयरिंग के रनरअप फॉर्मूले से कांग्रेस या क्षेत्रीय दल, किसे अधिक फायदा होगा? 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 422 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. कांग्रेस को 19.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 52 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस के उम्मीदवार 209 सीटों पर दूसरे और 99 सीटों पर तीसरे स्थान पर रहे थे. रनरअप फॉर्मूला अगर सीट बंटवारे का आधार बनता है तो कांग्रेस के हिस्से में 261 सीटें आएंगी.

 

पश्चिम बंगाल में  सत्ताधारी टीएमसी ने 63 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 22 सीटें जीती थीं. टीएमसी के उम्मीदवार 19 सीटों पर दूसरे और तीन सीटो पर तीसरे स्थान पर रहे थे. इस तरह टीएमसी के हिस्से गठबंधन में 41 सीटें आएंगी. यूपी की समाजवादी पार्टी (सपा) को पांच सीटों पर जीत मिली थी और 31 सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी. सपा को इस फॉर्मूले के तहत 36 सीटें मिलेंगी .

 

विपक्षी एकजुटता के अगुवा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ा था और पार्टी 16 सीटें जीतने मे सफल रही थी. एक सीट पर जेडीयू दूसरे स्थान पर रही थी.  लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी के उम्मीदवार 19 सीटों पर दूसरे स्थान पर . इस फॉर्मूले पर अगर सीट शेयरिंग की बात आती है तो 16 सांसदों वाली जेडीयू को 17 और शून्य सांसदों वाली आरजेडी को 19 सीटें मिलेंगी.

 

लोकसभा के पिछले चुनाव में शिवसेना (तब पार्टी एकजुट थी) के 18 उम्मीदवार जीते थे. तीन सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे. शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को पांच सीटें मिली थीं और 15 सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी.  रनरअप फॉर्मूले के तहत शिवसेना की 21 और एनसीपी की 20 सीटों पर दावेदारी बनती है. डीएमके को 23, सीपीआई (एम) को 16, सीपीआई को 6, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल, आईयूएमएल, नेशनल कॉन्फ्रेंस को तीन-तीन, सीपीआई (एमएल) को एक सीट मिलेगी. महबूबा मुफ्ती की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिलेगी.  महबूबा मुफ्ती की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिलेगी.

 

रनरअप फॉर्मूले को राजनीति के कई जानकार भी सीट शेयरिंग का मसला सुलझाने के लिए सबसे बेहतर विकल्प मान रहे हैं. लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो इसमें भी कई पेच हैं जिन पर सहमति बन पाना मुश्किल माना जा रहा है.  पश्चिम बंगाल में कांग्रेस  वह एक सीट पर सिमटती नजर आ रही है. आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है लेकिन उसके हिस्से बस तीन ही सीटें आएंगी. लेफ्ट पार्टियों को पश्चिम बंगाल में एक भी सीट नहीं मिलेगी.

 

जो जहां मजबूत, वो वहां लड़े का फॉर्मूला देने वाली ममता बनर्जी के लिए रनरअप फॉर्मूला भी मुफीद है. ममता की पार्टी को इस फॉर्मूले से भी 41 सीटें मिलेंगी. बिहार में जेडीयू को 17 और आरजेडी को 19 सीटें मिलेंगी. अखिलेश यादव की सपा को 36 सीटें मिल सकती हैं. महाराष्ट्र में अधिकतर सीटें एनसीपी और शिवसेना के के बीच बंट जाएंगी. ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, पीडीपी, लेफ्ट पार्टियां इस फॉर्मूले पर सहमत होंगी?

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