सिटी पोस्ट लाइव : बेंगलुरु में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक भी भंवर में फंस गई है. महाराष्ट्र में एनसीपी में हुई बगावत के कारण बैठक टल गई है. इतना ही नहीं, विपक्षी दलों को यह भय सताने लगा है कि महाराष्ट्र में जो एनसीपी के साथ हुआ कहीं उनके दल के साथ ऐसा न हो जाए. खासकर बिहार में इसका खासा भय दिख रहा है. जेडीयू में इससे काफी घबराहट है.महाराष्ट्र के उलट-फेर के पहले से ही नीतीश कुमार लगातार अपने विधायकों, सांसदों और विधान परिषद के सदस्यों से वन टू वन मिल कर उनका मन टटोल रहे हैं.
JDU के नेताओं के अनुसार सीएम नीतीश कुमार जेडीयू से जुड़े जन प्रतिनिधियों से क्षेत्र के विकास कार्यों का जायजा ले रहे हैं, लेकिन सच यह नहीं है. उन्हें पहले से ही यह भय सता रहा है कि कहीं उनके सांसद-विधायक साथ न छोड़ दें. उपेंद्र कुशवाहा ने जब से नीतीश का साथ छोड़ा है, तभी से नीतीश को अपनी पार्टी में टूट का भय सता रहा है.उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू छोड़ कर अपनी अलग पार्टी बना ली, लेकिन बीजेपी के शीर्ष नेताओं से मिल कर उन्होंने एनडीए के साथ जाने का संकेत भी दे दिया है. सिर्फ घोषणा की औपचारिकता बाकी है. कुशवाहा के साथ बीजेपी, हम और एलजेपी के नेता भी बार-बार दोहरा रहे हैं कि जेडीयू के एमएलए-एमपी उनके संपर्क में हैं.
दरअसल उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू छोड़ते वक्त आरोप लगाया था कि नीतीश कुमार आरजेडी में जेडीयू का विलय करना चाहते हैं. इस पर जेडीयू ने तब कोई सफाई तो नहीं दी, उल्टे कुशवाहा पर ही आरोप मढ़ दिया कि वे बीजेपी के साथ जाना चाहते हैं, इसलिए ऐसी अफवाह फैला रहे हैं. महाराष्ट्र का घटनाक्रम देख कर अब जेडीयू को सफाई देनी पड़ रही है कि आरजेडी में जेडीयू का विलय नहीं होगा. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह का कहना है कि किसी भी कीमत पर जेडीयू का विलय आरजेडी में नहीं होगा. इस तरह की अफवाह विरोधी दल के लोग फैला रहे हैं.
नीतीश कुमार को अपनी पार्टी के सांसद-विधायकों से अचानक फीडबैक लेने की जरूरत क्यों पड़ी, बिहार के सियासी हल्के में यह सवाल कई तरह की अटकलों को जन्म दे रहा है. दरअसल जेडीयू के विधायकों-सांसदों को यह भय सताने लगा है छह दलों वाले महागठबंधन में सीटों का बंटवारा होने पर उनका क्या होगा. नीतीश जिस तरह आरजेडी के इशारे पर काम कर रहे हैं, उससे यह भय और बढ़ गया है कि कहीं दबाव में उन्हें अपनी सीटें घटानी या इधर-उधर न करनी पड़ जाएं. ऐसा हुआ तो उनका क्या होगा.
नीतीश पर आरजेडी का कितना दबाव है, इसे समझने के लिए दो ही उदाहरण काफी हैं. पहला यह कि राहुल गांधी ने जब कांग्रेस कोटे से मंत्री बनाने की बात नीतीश से कही तो वे लालू यादव की ओर झांकने लगे थे. दूसरा ताजा उदाहरण स्वास्थ्य विभाग में ताबदले का था. तेजस्वी यादव के विभाग के 500 से अधिक कर्मियों के तबादले का आदेश उनकी गैर मौजूदगी में हेल्थ डायरेक्टर ने शाम को जारी किया तो अगली सुबह उनके ओएसडी ने उसे निरस्त कर दिया.