विपक्षी एकता की धुरी बने हुए हैं लालू यादव.’

सिटी पोस्ट लाइव :  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल करने को ले कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की मुहिम की शुरुआत की है.लेकिन इसके आधार में भी लालू प्रसाद यादव रहे हैं. बीजेपी आरोप भी लगाती है कि लालू प्रसाद ही नीतीश कुमार की विश्वसनीयता के ग्रांटर बने हैं. जब नीतीश कुमार पहली दफा कांग्रेस के नेताओं से मिलने गये  थे तब भी बीजेपी  जपा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस के किसी नेता ने मिलने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. यहां तक की चुनौती भी दी कि गर मुलाकात हुई है तो तस्वीर जारी करें.  लेकिन दूसरी बार जब लालू प्रसाद और तेजस्वी के साथ गए तो सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से भी मुलाकात हुई. तस्वीर भी जारी हुई.

बेंगलुरु में जब विपक्षी एकता की मुहिम की दूसरी बैठक हुई तो लालू प्रसाद ने पीएम नरेंद्र मोदी के विरुद्ध जमकर हमला बोला. लालू प्रसाद ने इस बैठक में लोकतंत्र और संविधान खतरे में है को बतौर उदाहरण समझाया भी. पटना की बैठक में भी वो जम कर नरेंद्र मोदी की सरकार पर हमला बोला. बेंगलुरु की बैठक के बाद तो संवाददाताओं से बातचीत में खुल कर इस बैठक के मकसद पर अपनी बात कही. बढ़ती महंगाई और छद्म राष्ट्रवाद पर सधे स्वर में अपनी बात रखी.

RJD की कार्यकारिणी की बैठक के दौरान ही एक्टिव भूमिका में लालू प्रसाद  आ गए थे. उन्होंने इस बैठक में सक्रिय राजनीति में रहने का आह्वान भी कर डाला था. एक समय सापेक्ष नेता की तरह उन्होंने इस बीमारी के समय में भी अपने पुत्र और जगतानन्द सिंह की लड़ाई को बड़े सलीके से सॉल्व किया.कार्यकारिणी की बैठक के बाद लालू प्रसाद ने अपनी इच्छा जताते कहा था कि वे चुनाव लड़ना चाहते हैं. इसकी इजाजत पाने की कोशिश भी करेंगे. तब उनसे पूछा गया कि आखिर कौन से इच्छा बची है कि आप लोकसभा जाना चाहते हैं. तब उन्होंने कहा था कि सदन में वे नरेंद्र मोदी को जवाब देना चाहते हैं. उन्हें बताना भी चाहते हैं कि देश केवल हिंदुओं का नहीं सभी धर्म और जातियों का है.

 बहरहाल, लालू प्रसाद का व्यक्तित्व ही राजनीति के लिए बना है. वे जेपी आंदोलन के चर्चित छात्र नेता थे. कुछ आरोपों को छोड़ दें तो 90 के दशक के सफल राजनीतिज्ञ जिन्होंने बिहार की सत्ता को 15 वर्षों तक साधा. फिलहाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी लालू प्रसाद के साथ राजनीति की परिपक्वता पाई. यह तो जातीय धरातल पर एक ऐसा समीकरण बना जहां लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की राजनीति अलग हुई. समय का खेला देखें कि आज फिर नीतीश कुमार की इच्छा के साधक और साधन लालू प्रसाद बने हुए हैं.

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