JDU-RJD के बीच फंसा पेंच, लालू यादव की चुप्पी से सस्पेंस.

सिटी पोस्ट लाइव :बिहार में इंडी अलायंस के बीच सीटों के बटवारे को लेकर घमाशान जारी है. जेडीयू  17 से कम  सीटों पर लड़ने को तैयार नहीं है. जेडीयू का कहना है कि पिछली बार उसने 17 सीटों पर चुनाव लड़ कर 16 सीटें जीती थीं. इसलिए उसे 17 से कम सीटें मंजूर नहीं. लेकिन  लालू यादव का मानना है कि वोटों का समीकरण आरजेडी के पक्ष में है. विधानसभा में आरजेडी के सर्वाधिक विधायक हैं. जेडीयू का वोट आधार महज 15-16 प्रतिशत रहा है. इसलिए उसे क्यों जेडीयू से कम सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए. आरजेडी का दूसरा तर्क है कि पिछले लोकसभा चुनाव में जब विधानसभा में अधिक सीटों का हवाला देकर लोकसभा में दो सदस्यों वाले जेडीयू ने भाजपा के बराबर 17 सीटें ले ली थीं तो उसी फार्मूले पर जेडीयू को इस बार चलना चाहिए.

आरजेडी अब 20 सीटों की मांग कर रही है.नीतीश कुमार की परेशानी ये है कि अगर वो अपनी सिटिंग सीटें छोड़ते हैं तो उनके सांसद भाग सकते हैं. पहले ही कई नेता जेडीयू को छोड़  चुके हैं. उपेंद्र कुशवाहा जैसे नीतीश के भरोसेमंद साथी ने भी साथ छोड़ दिया, जो लव-कुश समीकरण बनाने वालों में से थे. जेडीयू 16 से कम सीटें मिलने पर पार्टी में टूट के की आशंका से हलकान है.

आरजेडी अगर सबसे अधिक सीटें मांग रही है तो इसके पीछे ड-ल् (मुस्लिम-यादव) के वोट हैं. जाति सर्वेक्षण में दोनों जातियों की संख्या करीब 35 प्रतिशत निकली है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटें जीती थीं. एनडीए को 53 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे. अगले ही साल हुए विधानसभा के चुनाव में महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस व लेफ्ट) को करीब 37 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे.

लोकसभा सीटों के बंटवारे के सवाल पर आरजेडी और जेडीयू की तनातनी के बावजूद दोनों का एक साथ बने रहना दोनों के लिए मजबूरी है. आरजेडी भी जानता है कि जेडीयू को किनारे करने से लोकसभा में बड़ी कामयाबी की उम्मीद नहीं है.जेडीयू के बिना सरकार में बने रहना भी मुश्किल है. शायद यही वजह थी कि आरजेडी ने जेडीयू के कुछ लोगों को तोड़ कर सरकार बनाने का सपना देखा था, लेकिन सफलता नहीं मिली. दोनों दलों का करीब आना भी स्वाभाविक रिश्ता नहीं है. जेडीयू की नींव ही आरजेडी के विरोध के नाम पर पड़ी थी फिर भी मजबूरी में दोनों दल अस्वाभाविक रिश्ते को ढो रहे हैं.

आरजेडी-जेडीयू इंडी अलायंस में बिहार के बड़े दल हैं. बड़े दलों को छोटे दल बड़ा दिल दिखाने की नसीहत देते रहे हैं. कांग्रेस ने 11 सीटों की दावेदारी की है तो सीपीआई (एमएल) ने पहले ही पांच सीटों की सूची तेजस्वी यादव को सौंप दी है. सीपीआई और सीपीएम भी कतार में हैं. जेडीयू को 17 तो आरजेडी को उससे अधिक सीटें चाहिए.बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों का बंटवारा टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.

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