NDA के साथ जायेगें नीतीश,भंग करेंगे असेंबली!

 

सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा है कि नीतीश कुमार एनडीए के साथ जाने का पक्का मन बना चुके हैं. शर्तें तय हो चुकी हैं. सिर्फ मुहूर्त का इंतजार है. नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ जाने में अब कोई विशेष अड़चन नहीं है.उन्होंने जेडीयू को पुनर्गठित कर लिया है. राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर नई कार्यकारिणी तक का गठन कर लिया है.राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को हटाए जाने के बाद अब उनकी गठित कार्यकारिणी भंग कर नई कमेटी बना दी गई है. वशिष्ठ नारायण सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है. नई कमेटी में 22 लोग हैं. ललन सिंह की कमेटी का कोई नाम नई कार्यकारिणी में नहीं है.अब कोई भी नीतिगत फैसला लेने के लिए नीतीश कुमार की अपने मन की कमेटी तैयार है. जेडीयू के महागठबंधन से अलग होने और एनडीए में जाने के लिए नीतीश के सामने अब कोई बाधा नहीं है.

 

सियासी हलकों में ये चर्चा है कि सैद्धांतिक रूप से जेडीयू ने एनडीए का हिस्सा बनने का निर्णय ले लिया है. जेडीयू ने दो शर्तें रखी थीं. पहली शर्त यह है कि नीतीश कुमार विधानसभा भंग कर दें. लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव हों. दूसरी शर्त है, जेडीयू को असेंबली और लोकसभा चुनाव में भाजपा पूर्व की भांति बराबर सीटें तो देगी, लेकिन जेडीयू को असेंबली में अधिक सीटें आईं भी तो नीतीश की जगह सीएम भाजपा से बनेगा. नीतीश की रजामंदी इस पर मिल चुकी है. भाजपा भी तैयार है. यानी गेंद अब नीतीश कुमार के पाले में है. नये काम के लिए नीतीश को अब सिर्फ शुभ मुहूर्त का इंतजार है.

 

नीतीश कुमार को भी इस बात का एहसास है कि अगर वे बीजेपी के साथ जाते हैं तो पिछली बार की ही तरह लोकसभा में जेडीयू की जीत की गुंजाइश अधिक होगी. सीटें भी उन्हें मन माफिक मिल रही हैं. दूसरी बात उनके दिमाग में यह हो सकती है कि जब 45 विधायकों के साथ तीसरे नंबर की पार्टी होने के बावजूद जेडीयू सत्ता की चाबी अपने हाथ में रख सकता है तो बीजेपी के साथ जाने पर अगर सीटें अधिक आ गई तो उन्हें बारगेनिंग का मौका मिल जाएगा. कुछ नहीं हुआ तो बीजेपी के केंद्र की सत्ता में आने पर उन्हें आखिरी वक्त में भाजपा कोई संवैधानिक पद जरूर दे सकती है. वैसे भी नीतीश 2020 के विधानसभा चुनाव से ही कहते आ रहे हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है. महागठबंधन के साथ रह कर भी उन्होंने 2025 का असेंबली इलेक्शन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में ही लड़ने की बात कही थी.

 

नीतीश कुमार चाहते थे कि लोकसभा का चुनाव जेडीयू एनडीए में रह कर लड़े. नीतीश अपना बचा कार्यकाल बतौर सीएम पूरा कर लें. पर, भाजपा इसके लिए तैयार नहीं है. दूसरा, नीतीश कुमार को महागठबंधन में रह कर भी सीएम का बचा कार्यकाल पूरा करने की उम्मीद नहीं है. आरजेडी ने तो पहले उनके विधायकों को ही तोड़ने का प्रयास किया और विफल होने पर लोकसभा चुनाव तक ही आरजेडी इंतजार के मूड में है. नीतीश पर तेजस्वी यादव के लिए सीएम की कुर्सी खाली करने का आरजेडी लगातार दबाव बनाए हुए है. नीतीश मान कर चल रहे हैं कि एनडीए में जाने के बाद उन पर कुर्सी छोड़ने का दबाव तो नहीं रहेगा. इसलिए एनडीए में शामिल होने के पहले ही उन्होंने सारे पेंच सुलझा लिए हैं.

 

बिहार में परचम लहराने के लिए बीजेपी को नीतीश कुमार जैसा एक दमदार और बेदाग साथी चाहिए. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नीतीश के साथ रहने का कमाल देख लिया है. कुल 40 में 39 सीटें एनडीए की झोली में आ गई थीं. नीतीश के भाजपा के साथ आने पर इंडी अलायंस को खत्म करने में सहूलियत होगी. क्योंकि वे ही इंडी अलायंस के सूत्रधार रहे हैं. वे अगर अलायंस से अलग होते हैं तो इसका संदेश देश भर में सुनाई देगा. वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा सरकार बनाने के करीब रहती है तो उसे जेडीयू जैसे साथी की जरूरत होगी.

Nitish Kumar tough decision