नीतीश से मिलने पहुंचे लालू यादव, होनेवाला है बड़ा खेला?

नीतीश कुमार के फिर से NDA के साथ आने के मिल रहे संकेत, जानिये कैसे पाक रही है सियासी खिचडी.

मुस्कान प्रत्यूष.

सिटी पोस्ट लाइव : बिहार की राजनीति बड़े उलटफेर की संभावना बढ़ गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बेतिया में प्रस्तावित 13 जनवरी की रैली को टाल दिया गया. अब यह रैली 27 जनवरी को होने वाली है. इससे पहले मकर संक्रांति और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की 22 जनवरी की तिथि के बीच का समय  काफी महत्वपूर्ण है. इस दौरान बिहार की सियासत में बहुत बड़े बदलाव के संकेत मिल रहे हैं. आने वाले समय में एनडीए का हिस्सा नीतीश कुमार बन सकते हैं. राजनीति के अंदरखाने से बड़ी खबर यह है कि जेडीयू के मंत्री और विधायकों को पटना में ही रहने का निर्देश दिया गया है. ऐसा क्यों है इसको लेकर कई तरह की खबरें सामने आ रही हैं. बताया जा रहा है कि एक बार फिर बिहार की राजनीति में उथल पुथल हो सकता है और गठबंधन का नया स्वरूप सामने आ सकता है.

 

 आरजेडी और जेडीयू की सीट शेयरिंग को लेकर अलग-अलग राय कहीं ना कहीं ये इशारा भी दे रहा है कि बिहार की राजनीति में सब कुछ सहज नहीं है और कुछ बड़ा खेल होने वाला है. कई मसलों पर राजद और जदयू की राय अलग है. 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती पर ये दोनों ही दल अपना अलग अलग कार्यक्रम करने जा रहे हैं. दरअसल, पहले जदयू ने कर्पूरी जयंती की सभा कैंसल की थी, मगर राजद ने 23 जनवरी को भव्य जयंती समारोह की घोषणा के बाद जदयू ने उसके अगले दिन ही वेटनरी ग्राउंड में जयंती का ऐलान किया है. पूरे पटना में माइकिंग के जरिए आमंत्रित किया जा रहा है. जाहिर है अब राजद-जदयू आमने सामने है.

 

अलग-अलग रैलियों के आयोजन के साथ ही सीट शेयरिंग को लेकर लालू यादव का बयान भी काफी दिलचस्प है. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने जहां 17 सीटों पर लड़ने की घोषणा की है, और इंडिया अलायंस में जल्द से जल्द सीट शेयरिंग की मांग उठा रही है, वहीं लालू यादव साफ और स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि सीट शेयरिंग की जल्दी क्या है, यह अपने समय पर होगा. जाहिर है जदयू की जल्दी और राजद की देरी, ये दोनों ही संकेत बिहार की राजनीति की काफी कहानी कह देती है.

 

हाल के दिनों में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की दूरी लगातार दिख रही है. प्रकाश पर्व में नीतीश तेजस्वी की दूरी, शिक्षक नियुक्ति पत्र वितरण समारोह में श्रेय लेने की होड़ हो या फिर हाल में ही बिजनेस समिट में इन दोनों नेताओं के बीच की दूरी साफ दिखी है. हालांकि, राहुल गांधी के फोन के बाद तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री आवास जाकर यह दूरी पाटने की कवायद की थी, आज भी अचानक लालू यादव तेजस्वी यादव के साथ नीतीश कुमार से मिलने पहुंचे हैं. लेकिन नीतीश कुमार की लगातार चुप्पी काफी कुछ इशारा कर रही है कि बिहार में क्या कुछ होने वाला है.

 

13 जनवरी को पटना के गांधी मैदान में यह जिक्र करना कि 2005 के पहले बिहार में कैसे हालात थे, यह सीधा-सीधा राजद के शासनकाल पर हमला था. इसके साथ ही राजद और जदयू के नेताओं का परोक्ष रूप से बयानबाजी भी बढ़ी दूरी की ओर इशारा कर रहे हैं. हाल में ही नीतीश के विरोधी सुनील सिंह और सुधाकर सिंह जैसे नेताओं के तेवर भी फिर तल्ख हो गए हैं.संकेत भाजपा के शीर्ष नेताओं और एनडीए के घटक दलों से भी आ रहे हैं कि अंदरखाने सियासी खिचड़ी पक रही है. हाल में ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक साक्षात्कार में पूछे गए सवाल कि- पुराने साथी जो छोड़कर गए थे नीतीश कुमार आदि, ये आना चाहेंगे तो क्या रास्ते खुले हैं? इस पर अमित शाह ने कहा था कि- जो और तो से राजनीति में बात नहीं होती. किसी का प्रस्ताव होगा तो विचार किया जाएगा. उनके इस बयान को भी एक भाजपा और जदयू के बीच घटती दूरी का एक संकेत माना जा रहा है.

 

एनडीए के घटक दलों के नेताओं के बयानों से भी नीतीश कुमार के NDA में आने के संकेत मिल रहे हैं. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के नेता संतोष मांझी ने भी कहा है कि नीतीश कुमार के एनडीए में आने पर उन्हें कोई ऐतराज नहीं. लोजपा के पशुपति कुमार पारस भी यही बात दोहराते रहे हैं कि नीतीश कुमार एनडीए में आने वाले हैं. वहीं, सबसे बड़ा संकेत चिराग पासवान की ओर से मिला है जो अब तक नीतीश कुमार पर लगातार तल्ख रहे हैं. अब उन्होंने भी अपना रुख नर्म कर लिया है.

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