लालू यादव के ‘प्लान’ 2015 का सामना कैसे करेगी BJP

के चुनाव की तरह फिर साबित होगा टर्निंग प्वाइंट, जानें बीजेपी की कैसे बढ़ेगी मुश्किलें

सिटी पोस्ट लाइव : लम्बे समय से  बीमारी के कारण सक्रिय राजनीति से  बाहर रहे लालू यादव अब एक बार फिर लोकसभा और विधान सभा चुनाव को लेकर फॉर्म में आ गए हैं. 2015 के विधान सभा चुनाव में लालू प्रसाद ने  संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर दिये गये  बयान को आधार बनाकर आरक्षण के मसले को बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया था. लगभग सभी पिछड़े जातियां एनडीए के विरोध में गोलबंद हो गई थीं और  राज्य में महागबंधन की सरकार बन गई थी.

एक समय कांग्रेस के विरोध में परचम लहराने वाले लालू प्रसाद अब कांग्रेस के काफी करीब चले गए हैं. स्थिति इतनी अनुकूल बन गई कि बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह की जयंती पर कांग्रेस ने इन्हें मुख्य अतिथि बना कर कार्यक्रम का उद्घाटन भी करा डाला. दरअसल, वर्ष 2017 के बाद यह पहला मौका होगा जब कांग्रेस प्रदेश दफ्तर में लालू यादव अपनी मौजूदगी दिखाई थी. उनकी मौजूदगी को राजनीतिक जगत में भूमिहार वोट पर डोरे डालने के रूप में देखा गया. वैसे भी राजद सुप्रीमो तेजस्वी यादव के ए टू जेड स्ट्रेटजी समीकरण को ही मजबूत कर रहे थे.

लालू यादव ने सीधे-सीधे तो नहीं पर अपरोक्ष रूप से ‘इंडिया’ गठबंधन में पीएम पद के लिए राहुल गांधी की उम्मीदवारों को हवा यह कह कर दे दी कि राहुल गांधी अब दूल्हा बने और हम सब बाराती में चलेंगे. इसे राजनीतिक जगत में पीएम की उम्मीदवारी के रूप में नीतीश कुमार का नाम पीछे और राहुल गांधी का नाम आगे करने के रूप में देखा गया.31 मई 2021 को विधायक दल की बैठक में पहुंच कर लालू यादव ने अपनी सक्रियता का भी एहसास कराया. पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर शाम छह बजे आयोजित इस बैठक की लालू यादव ने अध्यक्षता  की. इस बैठक तेजस्वी और तेज प्रताप को एक साथ बिठा कर राजद की मजबूती भी बता गए .

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की सक्रियता ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. बीजेपी को वर्ष 2015 का विधान सभा चुनाव याद है. कैसे लालू यादव टर्निंग प्वाइंट बन गए और बीजेपी अपनी जीती हुई बाजी भी हार बैठी. इस बार भी लालू यादव दो धारी तलवार के साथ चुनावी रण में उतर चुके हैं जहां वे एक तरफ यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि यादवों के अकेले समर्थक हैं तो दूसरी ओर उन्होंने श्रीकृष्ण सिंह की 136 वी जयंती के मौके पर भूमिहार को साधने की कोशिश भी कर रहे हैं.इतना ही नहीं जातीय जनगणना के बाद आरक्षण का दायरा बढाकर लालू यादव एकबार फिर से आरक्षण को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी कर चुके हैं.

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