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हजारीबाग । महिलाएं अब सशक्त और आत्मनिर्भर हो रही है। इसके साथ ही कई ऐसी कला है जो विलुप्त हो रही थीं उन्हें फिर से संजोने का काम भी कर रही हैं। उन्हीं में एक है उषा ठाकुर जो हजारीबाग के कंचनपुर की रहने वाली है। जिन्होंने एपलीक कांधा कला को सीखा और अब दूसरों को सिखा भी रही है। यही नहीं इस कला के जरिए आर्थिक रूप से सबल भी हो रही है।
बदलते जमाने ने कई कला को पीछे छोड़ दिया। 15 से 20 वर्ष पहले महिलाएं घर में सुई और धागा से एक से बढ़कर एक कलाकृति कपड़े पर उकेरा करती थी। उस कला को एपलीक कांधा कहा जाता था। यह कलाकृति विलुप्त होने की कगार में पहुंच गई है। इस कलाकृति के जरिए महिलाएं कपड़ा पर सुईं कि मदद से रश्मि धागा से एक से बढ़कर एक कलाकृति बनाती थी। कपड़े के ऊपर कपड़ा लगाकर नया-नया डिजाइन बनाया जाता था।
अब यह कलाकृति विलुप्त हो गई है। हजारीबाग की कंचनपुर की रहने वाली उषा ठाकुर ने इस कला को ही अपना जीवन का आधार बना लिया। उषा दुसरे महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं। उषा ठाकुर की यह कलाकृति अब आॅनलाइन मार्केट में भी धूम मचा रही है। सबसे पहले कागज पर कलाकृति बनाया जाता है। कपड़े पर कलाकृति को छापा जाता है। छपे हुए कलाकृति पर सूई से रेश्मि धागा से काम जाता है। जिसे एपलीक कहा जाता है। जब कपड़े के ऊपर कपड़ा लगा दिया जाता है तो उसे कांधा कहा जाता है। इस तरह से दो कलाकृति एक ही कपड़े पर जब उतारा जाता है तो उसे एप्लिक कांधा कहा जाता है।
रुमाल ,तकिया का खोली, चादर और कुर्ती में यह कला देखने को मिलता था। बदलते जमाने ने इस कला को पीछे छोड़ दिया। यह कला युवा पीढ़ी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। हजारीबाग की छात्रा शालू कहती है कि अब कला दिखती नहीं है। इस कला की खूबसूरती का कोई जवाब भी नहीं है। इससे जुड़े कलाकारों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। बदलते जमाने ने कई कला को पीछे छोड़ दिया है। एक बार फिर पुराने जमाने के कलाकृति फैशन की दुनिया में अपनी जगह बनाने को आतुर दिख रही है। जरूरत है ऐसे कलाकारों को प्रोत्साहित करने की।