- श्यामा प्रसाद विश्वविद्यालय में गीता जयंती समारोह का हुआ आयोजन
सिटी पोस्ट लाइव
रांची : राजधानी रांची के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के तत्वावधान में रविवार को आयोजित गीता जयंती समारोह में नव नामांकित विद्यार्थियों के स्वागत कार्यक्रम ने शिक्षा, संस्कृति और आध्यात्मिकता के बीच एक अद्भुत सामंजस्य का उदाहरण प्रस्तुत किया। इस विशेष आयोजन में संस्कृत विभाग ने भारतीय संस्कृति की गहराई और भगवद्गीता के अद्वितीय संदेश को विद्यार्थियों तक पहुंचाने का प्रयास किया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि रांची विश्वविद्यालय की मानविकी संकायाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) अर्चना कुमारी दूबे ने कहा कि भगवद्गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह मानवता को जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन प्रदान करती है।
उन्होंने गीता के कर्मयोग सिद्धांत को युवाओं के लिए अत्यंत उपयोगी बताया, जो उन्हें जीवन में आने वाली कठिनाइयों से जूझने और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सतत प्रयासरत रहने की प्रेरणा देता है। उन्होंने विद्यार्थियों से आत्मचिंतन और मानसिक स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया, जो गीता के शिक्षण का मूल तत्व है। प्रो. दूबे ने शिक्षा के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की आवश्यकता पर बल देते हुए विद्यार्थियों को समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरित किया। राजकीय संस्कृत महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेश कुमार मिश्र ने कहा कि भगवद्गीता को भारतीय संस्कृति और दर्शन का स्तंभ बताते हुए कहा कि यह ग्रंथ केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन नहीं देता, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करता है। उन्होंने संस्कृत भाषा की महत्ता पर जोर देते हुए विद्यार्थियों से इसे न केवल एक भाषा के रूप में देखने, बल्कि इसे भारतीय विज्ञान, दर्शन और सभ्यता के मूल आधार के रूप में समझने का आग्रह किया।
डॉ. मिश्र ने गीता के प्रत्येक अध्याय को जीवन के विविध पक्षों के लिए उपयोगी बताते हुए कहा कि यह ग्रंथ कर्म, ज्ञान और भक्ति का अनोखा संतुलन प्रस्तुत करता है। उन्होंने नव नामांकित विद्यार्थियों को संस्कृत के अध्ययन के प्रति प्रेरित करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने भगवद्गीता के श्लोकों की व्याख्या करते हुए उनके जीवनोपयोगी संदेशों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया। उन्होंने गीता के कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग के सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा की और विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे इन सिद्धांतों को अपने जीवन में आत्मसात करें। डॉ. द्विवेदी ने संस्कृत भाषा और गीता के महत्व को समझाते हुए कहा कि संस्कृत का अध्ययन न केवल शास्त्रों की गहराई तक पहुंचने में मदद करता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और मूल्यों को समझने का माध्यम भी है।