चुनाव में कल्पना नहीं होती तो हेमंत का क्या होता…..

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सिटी पोस्ट लाइव : कोल्हान टाइगर के नाम से मशहूर पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के झामुमो छोड़ कर बीजेपी  में आने से झारखंड के विधानसभा चुनाव में झामुमो को सबसे ज्यादा  नुकसान होने का अनुमान था.लेकिन ऐसा नहीं हुआ.हेमंत को जेल भेजे जाने की वजह से  आदिवासी वोटों का झामुमो और उसके सहयोगी दलों के पक्ष में हुए ध्रुवीकरण हो गया जिससे बाजी पलट गई. आदिवासी समुदाय के सभी समूहों की गोलबंदी तो इंडिया गठबंधन के पक्ष में नहीं हुई लेकिन फिर भी उनकी पहली पसंद महा  गठबंधन ही रहा.

 

इंडिया गठबंधन की जीत में मुस्लिम वोट के  ध्रुवीकरण ने अहम् भूमिका निभाई. 15 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले झारखंड में हर 10 में से नौ मतदाताओं (90 प्रतिशत) ने इंडिया गठबंधन को वोट दिया, जिससे इस गठबंधन की एनडीए पर निर्णायक बढ़त बनी. जबकि 12 प्रतिशत दलित वोट कमोबेश दोनों गठबंधनों के बीच बंटा हुआ रहा. अगर एनडीए ने सवर्णों और ओबीसी का ज्यादा वोट हासिल नहीं किया होता, तो उसकी हार का अंतर और बड़ा होता.

 

ओबोसी समुदाय के, जो राज्य के कुल मतदाताओं का 45 फीसदी हिस्सा हैं, एक चौथाई हिस्से (26 प्रतिशत) ने आइएनडीआइए गठबंधन, तो 47 फीसदी ने एनडीए गठबंधन के पक्ष में वोट दिया. इस तरह, मुस्लिमों को अगर छोड़ दें, तो आदिवासी और गैर आदिवासी मतदाताओं के बीच हुए ध्रुवीकरण के फर्क ने इंडिया गठबंधन की जीत में मदद की.सबसे अहम् भूमिका रही मईया योजना की जिसकी वजह से महागठबंधन एनडीए पर भारी पड़ा.ऊपर से बिजली बिल माफ़ी ने हेमंत सोरेन का काम आसान कर दिया.मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत के चेहरे ने जितना काम किया उससे ज्यादा उनकी पत्नी का दमदार चुनाव प्रचार काम आया.कल्पना सोरेन अगर चुनाव प्रचार में नहीं होती तो हेमंत सरकार की वापसी मुश्किल थी.इस चुनाव में JMM को एक और बड़ा नेता कल्पना सोरेन के रूप में मिल गया है.

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