सिटी पोस्ट लाइव : सभी दलों-गठबंधनों में टिकट बंटवारे को लेकर अफरातफरी है .नेताओं के इधर-उधर भागने का बिहार में दौर चल रहा है. ऐसे में इन सब बातों से बेफिक्र बिहार के सीएम नीतीश कुमार विलायत जा रहे हैं. नीतीश कुमार इंग्लैंड में वहां का साइंस म्यूजियम देखने जा रहे हैं. वे सात मार्च को जाएंगे. उनका दौरा पांच दिनों का है. बताया तो यह भी गया है कि अपने ब्रिटेन दौरे में मुख्यमंत्री वहां के निवेशकों से मुलाकात करेंगे. वे उन्हें बिहार आने का न्यौता देंगे. जेडीयू बिहार में एनडीए का प्रमुख पार्टनर है. नीतीश जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. फिर वे इतने निश्चिंत क्यों दिख रहे, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही.
नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू अब एनडीए का बिहार में प्रमुख घटक दल है. जेडीयू के अलावा लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों गुट, जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ और उपेंद्र कुशवाहा का राष्ट्रीय लोक मोर्चा शामिल हैं. प्रधानमंत्री के दो मार्च के बिहार आगमन पर जेडीयू और पशुपति पारस के गुट वाली लोजपा के नेता तो मंच पर रहे, लेकिन लोजपा (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा पीएम के कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. इसकी कोई स्पष्ट वजह दोनों नेताओं की ओर से नहीं बताई गई. पर, दोनों के तार नीतीश कुमार से जोड़े जा रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार से अनबन के कारण ही जेडीयू छोड़ कर अपनी अलग पार्टी बनाई है, जबकि चिराग पासवान को नीतीश कुमार अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते रहे हैं. नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी के बाद दोनों को उनके हिस्से में मिलने वाली लोकसभा सीटों पर खतरा मंडराता दिख रहा है.
बहरहाल, नीतीश कुमार एनडीए के सभी घटक दलों में सबसे अधिक निश्चिंत नजर आ रहे हैं. जहां भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करनी शुरू दी है, वहीं नीतीश चुनावी गहमागहमी से बेफिक्र होकर विदेश दौरे पर जा रहे हैं. इससे यही संकेत मिलता है कि भाजपा ने उनकी सीटें सुरक्षित कर दी हैं और वे इससे संतुष्ट हैं. जेडीयू के नेता इंडी अलायंस में रहते लगातार सिटिंग सीटों से कम पर मानने को तैयार नहीं थे. वे जल्द से जल्द सीटों के बंटवारे की मांग कर रहे थे. सच तो यही है कि इसे ही आधार बना कर नीतीश ने इंडी अलायंस से अलग होने का फैसला भी किया था. पर, एनडीए में आते ही नीतीश कुमार ने सीटों के बाबत कभी कोई चर्चा नहीं की. जिस तरह उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में अब इधर-उधर न होने की सफाई दी, उससे इतना तो समझ में आता ही है कि नीतीश ने एनडीए में वापसी के साथ ही शायद सारी बातें तय कर ली हैं.
ये बात किसी की समझ में नहीं आ रही कि नीतीश कुमार ने बेमौसम विदेश जाने की योजना क्यों बनाई.आरजेडी के नेता और बिहार के पूर्व डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव ने जन विश्वास रैली में ऐलानिया कहा कि 2024 के बाद जेडीयू का अस्तित्व नहीं बचेगा. उनके इस बयान में दम इसलिए दिखता है कि जेडीयू में सीटों को लेकर जिस तरह का सन्नाटा पसरा है, वैसे में कुछ अप्रत्याशित हो जाए तो आश्चर्य नहीं. जेडीयू के सिटिंग सांसदों ने नीतीश को पहले ही बता दिया है कि वे भाजपा के साथ ज्यादा कंफर्ट फील करते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि नीतीश ने भाजपा के साथ अपनी पार्टी के विलय की कोई डील कर रखी है.
पिछले लोकसभा चुनाव (साल 2019) में भाजपा और जेडीयू 17-17 सीटों पर लड़े थे. जेडीयू के 16 उम्मीदवार जीत भी गए थे. जिन्होंने जीत दर्ज की, वे भाजपा के साथ अपने को सहज मानते हैं. यह भी हो सकता है कि भाजपा अपनी सीटों पर लड़े और जेडीयू के उम्मीदवारों को अपने ही टिकट में एडजस्ट करे. हालांकि अभी ऐसा कहना प्री मैच्योर होगा, पर नीतीश ने जिस बेफिक्री से चुनावी गहमागहमी के बीच विलायत जाने का कार्यक्रम बनाया है, उससे ऐसी आशंका को बल मिलता है. राजनीति में कब क्या हो जाए, कहना मुश्किल है. साल 2022 में मरते दम तक भाजपा के साथ न जाने की शपथ लेने वाले नीतीश अगर दोबारा उसके साथ सट जाते हैं और अब इधर-उधर न जाने का पीएम के समक्ष वादा करते हैं तो राजनीति के तिकड़म को समझना थोड़ा मुश्किल तो हो ही जाता है.
पिछली बार लोकसभा चुनाव में एनडीए में सीटों के तीन ही दल दावेदार थे. भाजपा और जेडीयू ने 34 सीटें बराबर-बराबर बांट ली थीं और छह सीटें लोजपा के खाते में गई थीं. इस बार लोजपा के दो खेमे हैं. पशुपति पारस और चिराग पासवान के गुट आपस में ही गुत्थमगुत्था होते रहे हैं. दोनों गुट अलग-अलग छह सीटों की मांग करते रहे हैं. जीतन राम मांझी की पार्टी हम गया की एक सीट मांग रही है, जबकि आरएलएम के उपेंद्र कुशवाहा 2014 की तरह कम से कम तीन सीटें चाहते हैं. एनडीए सबको कैसे संतुष्ट करेगा, यह हफ्ते भर में स्पष्ट हो जाएगा. तब कौन मानेगा और कौन नाखुश होगा, यह देखने वाली बात होगी.