सिटी पोस्ट लाइव :विपक्षी गोलबंदी की शुरुवात करनेवाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथ कुछ भी नहीं आया है.विपक्ष को मोदी के खिलाफ गोलबंद नीतीश कुमार ने किया लेकिन कांग्रेस स्टीयरिंग सीट पर बैठ गई. नीतीश कुमार को बनना था पीएम पड़ का उम्मीदवार लेकिन उन्हें संयोजक भी नहीं बनाया गया. अब विपक्ष के साथ रहने से उन्हें कोई लाभी नहीं मिलनेवाला.उलटे उन्हें सीट बटवारे में अपनी सिटिंग सीटों की कुर्बानी भी देनी पड़ेगी.20 24 में ही उन्हें तेजस्वी यादव के लिए सीएम की कुर्सी भी खली करनी पड़ेगी.ऐसे में माना जा रहा है कि नीतीश कुमार फिर बीजेपी के साथ जा सकते हैं.
नीतीश कुमार अगर 18 साल से लगातार बिहार के सीएम बने हुए हैं तो इसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं. पहला- यह कि समता पार्टी और बाद में जेडीयू बनने की कहानी का आधार ही आरजेडी का विरोध रहा है. लालू राज को ‘जंगल राज’ बता कर ही नीतीश ने लालू-राबड़ी राज को उखाड़ फेंकने में कामयाबी हासिल की थी. दूसरा- नीतीश कुमार का जातीय आधार लव-कुश समीकरण वाले वोटर रहे हैं. इसमें सर्वाधिक संख्या कुश यानी कुशवाहा वोटरों की रही है. जेडीयू से उपेंद्र कुशवाहा के अलग होने और सम्राट चौधरी के बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद नीतीश के वोटरों की संख्या अब सिर्फ स्वजातीय लव यानी कुर्मी वोटों तक ही सिमट कर रह गई है.बीजेपी ने उसमें भी सेंधमारी कर दी है. आरजेडी शासन का आतंक झेल चुके जो वोटर बीजेपी और जेडीयू के साथ आए थे, वे भी नीतीश के आरजेडी के साथ जाने पर बिदके हुए हैं.
नीतीश कुमार राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं.केवल पल्टू राम कहे जाने के डर से वो अपने राजनीतिक भविष्य को दांव पर नहीं लगानेवाले.वो फिर से बीजेपी के साथ जाकर 20 30 तक सीएम की कुर्सी पर बने रहने का रास्ता तलाशने लगे हैं. शायद यही वजह है कि जी-20 की बैठक के दौरान राष्ट्रपति की ओर से आयोजित भोज कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने शामिल होने का फैसला लिया. भोज कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की जैसी तस्वीरें सामने आई हैं, उसे देख कर किसी को भी सहज भरोसा हो जाएगा कि जेडीयू और बीजेपी में भीतरी स्तर पर कोई ‘खिचड़ी’ पक रही है.
आरजेडी या बिहार के महागठबंधन में शामिल दूसरे दलों को पहले से डर है कि नीतीश का मन कभी भी बदल सकता है. बुधवार को दिल्ली में शरद पवार के आवास पर हो रही विपक्षी दलों की समन्वय समिति की बैठक में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह नहीं शामिल हुए.बताया गया कि ललन सिंह डेंगू से पीड़ित हैं. समन्वय समिति में आरजेडी से तेजस्वी यादव और जेडीयू से ललन सिंह के नाम हैं. तेजस्वी तो मंगलवार को ही दिल्ली रवाना हो गए, लेकिन ललन सिंह नहीं गए.
नीतीश कुमार विपक्ष से पीछा छुडाने की तैयारी शुरू कर चुके हैं.उनके पास इसके लिए कई बहाने भी हैं. पहला यह कि तेजस्वी यादव अब रेलवे में जमीन के बदले नौकरी मामले में चार्जशीटेड हैं. इसी मामले में जब पहली बार 2017 में तेजस्वी का नाम आया था तो नीतीश ने आरजेडी से पल्ला झाड़ लिया था. अब तो वे चार्जशीटेड हो गए हैं. दूसरा कारण सीटों का बंटवारा बनेगा. नीतीश कुमार को सभी सिटिंग सीटें चाहिए.विपक्ष में रहते ये संभव नहीं है.नीतीश कुमार की कई सिटिंग सीटों पर RJD-और कांग्रेस की नजर हैं. कांग्रेस पार्टी और वाम दलों को नजरअंदाज कर JDU को 16 सीटें देना मुश्किल है.लेकिन बीजेपी के साथ आने से ये संभव है.बीजेपी के साथ आने से लोक सभा की ज्यादा सीटें तो मिलेगी ही साथ ही जीत की संभावना भी ज्यादा रहेगी.इतना ही नहीं अगले सात साल तक के लिए उनकी सीएम की कुर्सी भी सलामत रह जायेगी.
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