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वीसी नियुक्ति को लेकर शिक्षा विभाग-राज भवन आमने-सामने.

वीसी नियुक्ति: पहले राजभवन, अब शिक्षा विभाग ने विज्ञापन जारी किया, किसका विज्ञापन है वैध .

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के छह विश्वविद्यालयों (बीआरबीएयू, बीएनएमयू ,केएसडीएसयू, एलएनएमयू , एकेयू और पीयू) के कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर फिर से राज भवन और शिक्षा विभाग आमने सामने है.कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर  राजभवन के बाद शिक्षा विभाग ने भी विज्ञापन जारी कर दिया है.राजभवन का विज्ञापन 4 अगस्त को जारी हुआ और शिक्षा विभाग का विज्ञापन 22 अगस्त को प्रकाशित हुआ. राजभवन की विज्ञप्ति के अनुसार आवेदन की अवधि 21-22 दिन की है जो 26 अगस्त को समाप्त हो रही है. शिक्षा विभाग के विज्ञापन में भी आवेदन की मियाद 22 दिन है और यह 13 सितंबर को समाप्त हो रही ​है.

सवाल ये उठ रहा है कि  आवेदन मांगने का अधिकार राजभवन को है या शिक्षा विभाग को? कुलपतियों की नियुक्ति में दोनों में से कौन आवेदन मान्य होगा? यह तीसरा मौका है जब अधिकारों के सवाल पर राजभवन और शिक्षा विभाग आमने-सामने हैं. पहले टकराव चार वर्षीय पाठ्यक्रम को लेकर हुआ. फिर बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय के वीसी, प्रो-वीसी के वेतन रोकने पर हुआ.अब उन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति का है जिनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है या निकट भविष्य में समाप्त होने वाला है.

जानकार बताते हैं कि विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 की धारा 10 (ii) में कुलपतियों की नियुक्ति की जो प्रक्रिया निर्धारित है, उसमें प्रयुक्त शब्द, ‘पब्लिक नोटिफिकेशन’ के तहत ही इच्छुक लोगों से आवेदन मांगने का विज्ञापन जारी होता है. और कोई भी पब्लिक नोटिस जारी करने का अधिकार राज्य सरकार को ही है, न कि राजभवन को. शिक्षा विभाग ने इसी अधिकार का प्रयोग करते हुए आवेदन आमंत्रित किए हैं. वैसे, हाल के वर्षों में राजभवन की ओर से ऐसे विज्ञापन जारी करने परिपाटी रही है, जो बिना रोक-टोक चल रही थी. इसी परिपाटी के तहत कुलपतियों की नियुक्ति संबंधी विज्ञापन राजभवन की ओर से जारी हुआ.

अधिनियम की धारा 10 (1) (i) के मुताबिक शिक्षा क्षेत्र के वैसे शिखर व्यक्ति जिनका अकादमिक स्तर सर्वोत्कृष्ट हो, कुलपति नियुक्त किए जाएंगे. ऐसे व्यक्ति किसी विवि में कम से कम 10 वर्षों तक प्रोफेसर या किसी शोध या अकादमिक संस्थान में समतुल्य पद पर आसीन रह चुके हों.धारा 10 (ii) कुलपति की नियुक्ति के लिए सर्च कमेटी 3-5 नामों का पैनल तैयार करेगी. कमेटी यह पैनल- विज्ञापन, नॉमिनेशन, टैलेंट सर्च प्रक्रिया या इन सभी प्रक्रियाओं को एकसाथ अपनाते हुए बनाएगी. सर्च कमेटी में जिन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति होनी है, उनके या उनसे संबद्ध कॉलेजों से जुड़े कोई व्यक्ति नहीं होंगे.

धारा (iii) सर्च कमेटी के चेयरमैन व एक सदस्य की नियुक्ति वीसी करेंगे जबकि एक अन्य को सरकार की ओर से नामित किया जाएगा.धारा 10 (2) सर्च कमेटी द्वारा सुझाए गए नामों में से किसी एक व्यक्ति को कुलाधिपति, राज्य सरकार से परामर्श के पश्चात कुलपति नियुक्त करेंगे. वीसी नियुक्ति का विज्ञापन क्या सर्च कमेटी की सहमति से जारी किया गया? यदि नहीं, तो फिर यह सर्च कमेटी की अवधारणा पर ही प्रहार है? शिक्षा विभाग ने राजभवन की ओर से वीसी के संभावित रिक्त पदों की सूचना हासिल होने के बाद यदि विज्ञापन प्रकाशित किया है तो फिर राजभवन ने अपने स्तर से विज्ञापन क्यों निकाला?  आवेदकों ने दोनों विज्ञापनों को वैध मानते हुए अप्लाई किया तो फिर सर्च कमेटी किसे तवज्जो देगी? आवेदन करने वालों के नाम को पैनल की बुनियाद बनाना क्या सर्च कमेटी के अधिकारों को सीमित करना नहीं है?ईन सवालों का जबाब फिरहाल किसी के पास नहीं है.

कुलपतियों की नियुक्ति का विज्ञापन जारी हो गया लेकिन, सर्च कमेटी अभी बनी ही नहीं है. जानकारी के मुताबिक कमेटी के लिए राजभवन ने शिक्षा विभाग से एक नाम मांगा है तो शिक्षा विभाग ने राजभवन से कमेटी के चेयरमैन और सदस्य के नाम मांगे हैं.2013 में भी कुलपतियों की नियुक्ति पर तकरार हुआ था. तब मामला सुप्रीम कोर्ट गया था. तब जस्टिस जीएस सिंघवी और वी गोपाल गौड़ा की बेंच ने रामतवक्या सिंह बनाम राज्य सरकार व अन्य के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि कुलाधिपति राज्य सरकार से सार्थक और प्रभावी विमर्श के पश्चात नियुक्तियां करेंगे. इस फैसले में कुलपतियों, प्रति कुलपतियों की नियुक्ति के लिए पैनल बनाने की बात कहीं गई थी.

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