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I.N.D.I.A का बिहार में सीटों के बटवारे का फॉर्मूला तय.

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सिटी पोस्ट लाइव :I.N.D.I.A गठबंधन मुंबई में 25-26 अगस्त को होने वाली बैठक के पहले एक बड़ी खबर आई है.सूत्रों के अनुसार महागठबंधन के सहयोगी दलों के बीच  सीटों के बटवारे का फार्मूला लगभग तय हो गया है. गौरतलब है कि विपक्ष की तीसरी बैठक में सीटों के बटवारे का फार्मूला तय होना है.महागठबंधन के सूत्रों की मानें तो लोकसभा के सीटों का बंटवारा को लेकर लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच सहमती बन चुकी है. जेडीयू और आरजेडी 15-15 लोकसभा सीटों पर लड़ेंगी. कांग्रेस को आठ सीटें और भाकपा माले को 2 सीटें दी जाएंगी.

 

सीटों का  यह बंटवारा जातिगत आधार, पिछले लोकसभा के प्रदर्शन के आधार पर किया गया है. हालांकि अभीतक इसकी  औपचारिक रूप से घोषणा नहीं हुई है.नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के पास अभी 16 सांसद हैं. विधानसभा में आरजेडी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है. इस हिसाब से वह जेडीयू से कम सीटों पर नहीं लडेगी.कांग्रेस पिछले चुनाव में 9 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और एक सीट किशनगंज जीतने में सफल रही थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाकपा माले 4 सीटों पर चुनाव लड़ीं थी. इनमें केवल एक सीट पर दूसरे स्थान पर रही थी. 1.4% वोट मिले थे. भाकपा माले के अलावा सीपीआई और सीपीआई (एम) का जनाधार बिहार में नगण्य है.ऐसे में इस बार केवल भाकपा मामले के लोकसभा की 2-3 सीटें मिल सकती हैं. इसके लिए कांग्रेस की सीटों में एक-दो सीटें आगे पीछे हो सकती हैं.

 

महागठबंधन में चार बड़े राज्य हैं. यूपी, बिहार, बंगाल और महाराष्ट्र. चारों राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस पर भारी हैं. लगभग कमोबेश एक जैसी स्थिति है.पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि इस फॉर्मूले के आधार पर कांग्रेस को स्पष्ट मैसेज है कि जिन राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व है, वहां उन्हें सीटों के साथ समझौता करना होगा और छोटे भाई की भूमिका निभानी होगी.कांग्रेस भी इस बात को समझती है कि सभी को साथ लेकर चलना है. जो पार्टियां जहां प्रभावी हैं उन्हें उनकी हैसियत के हिसाब से सीटें दी जाए. इसी के आधार पर फॉर्मूला निकाला जाएगा.

 

I.N.D.I.A गठबंधन में अभी बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, दिल्ली के लगभग 12 क्षत्रप शामिल हैं. इनके पास लोकसभा की 90 सीटें हैं.इसमें मुख्य रूप से बिहार की जेडीयू के पास 16 सीटें, झारखंड के जेएमएम के पास 1 सीटें, महाराष्ट्र की शिवसेना (उद्धव गुट) के पास 18 और एनसीपी के पास 4 सीटें, पश्चिम बंगाल की टीएमसी के पास 23 सीटें, तमिलनाडु की डीएमके के पास 23 सीटें, जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास 3 सीटें, पंजाब और दिल्ली में आप के पास 2 सीटें शामिल हैं.

 

2019 में 185 सीटें ऐसी थी, जहां भाजपा और क्षेत्रीय दल नंबर-1 और नंबर-2 थे. इनमें मुख्य तौर पर यूपी की 74 सीटें, बंगाल की 39 सीटें, महाराष्ट्र की 10 सीटें, बिहार-15 सीटें, झारखंड और कर्नाटक से 6-6 सीटें हैं.इन 185 सीटों में 128 सीटों पर कांग्रेस का रोल लिमिटेड या बहुत कम था. इसमें खास कर यूपी की 74, पश्चिम बंगाल की 39, ओडिशा की 19 सीटें शामिल हैं. इस बार भी यहां मेन कॉन्टेस्ट बीजेपी और क्षेत्रीय दल के बीच होगा. कांग्रेस का यहां खास असर नहीं है.2019 के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में 97 लोकसभा की सीटें ऐसी हैं, जहां 2019 में क्षेत्रीय दल वर्सेज क्षेत्रीय दल का मुकाबला था. इनमें क्षेत्रीय दल ही नंबर-1 और नंबर-2 पर थे.

 

 43 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी और कांग्रेस की सहयोगी पार्टियों के बीच मुकाबला हुआ था. अब अगर यहां भाजपा और क्षेत्रीय दलों के बीच सीधा मुकाबला होता है तो लोकसभा चुनाव में तस्वीर बदल सकती है.इन 97 सीटों में से मुख्य रूप से तमिलनाडु की 27 सीटें, महाराष्ट्र की 16 सीटें, बिहार की 16 सीटें और आंध्र प्रदेश की 25 सीटें शामिल हैं. बाकी की 13 अन्य क्षेत्रीय पार्टियों की हैं. महाराष्ट्र और तमिलनाडु को मिला दें तो इन 43 सीटों पर गठबंधन पहले से ही है. बाकी के 54 सीटों पर काफी मुश्किल होने वाली है.

 

2014 में बीजेपी के जीतने की मुख्य वजह विपक्ष का एकजुट नहीं होना था. यही वजह थी कि बिहार में एनडीए को 31 सीटें मिली थीं. इसमें अकेले भाजपा 22 सीटें लाने में कामयाब रही.अब अगर आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां अपना सिर्फ एक उम्मीदवार उतारती हैं तो ये बीजेपी के लिए मुश्किल कर सकती हैं. मुंबई की बैठक से पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दिल्ली में मुलाकात हुई. आरजेडी सूत्रों की मानें तो इसमें सीट बंटवारे से लेकर गठबंधन के कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई.

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