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छोटे दलों के बल पर नीतीश कुमार को बिहार में घेरने की योजना.

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सिटी पोस्ट लाइव : आज एकसाथ बेंगलुरु और दिल्ली में महागठबंधन और एनडीए की बैठक चल रही है.बंगलुरु में मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने का फार्मूला तय हो रहा है तो दिल्ली में महागठबंधन के मुकाबले के लिए बीजेपी अपना कुनबा बढाने को लेकर रणनीति बना रही है.दिल्ली में एनडीए की बैठक को  बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक का जबाब माना जा रहा है. NDA की दिल्ली में आज हो रही महाबैठक होगी। बीजेपी का दावा है कि इसमें 30 पार्टियां शामिल होंगी। लोजपा (रा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिमें भी 34 से ज्यादा दल शामिल होगें.

 

बीजेपी नीतीश कुमार को उनके घर में घेरने की तैयारी कर रही है. महागठबंधन के 6 दलों के जवाब में बीजेपी बिहार में NDA के नए स्वरूप में भी 6 दलों को शामिल करने की कोशिश में जुटी है. अब लगभग साफ हो गया है कि लोजपा का दूसरा धड़ा, जिसकी अगुवाई चिराग पासवान कर रहे हैं  वो भी NDA का हिस्सा होगा.इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा का रालोजद और जीतन राम मांझी की हम पार्टी भी NDA के कुनबे का हिस्सा बनेगी. मुकेश सहनी को मनाने की प्रक्रिया भी जारी है. सहनी फिलहाल अपनी शर्तों पर अड़े हुए हैं. वो चिराग पासवान के बराबर सीटों की मांग कर रहे हैं.

 

बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA गठबंधन को 40 में से 39 सीटों पर जीत मिली थी. तब नीतीश NDA के साथ थे, लेकिन अब वे महागठबंधन के साथ हैं और बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में लगे हैं.नीतीश के NDA से चले जाने से कहीं न कहीं बीजेपी को कुछ नुकसान तो जरूर हुआ है. बीजेपी किसी भी सूरत में इस नुकसान को कम से कम करना चाहती है. यही कारण है कि बीजेपी हर उस नेता को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है जिसे वो पहले NDA से निकाल चुकी है.

 

कभी NDA का हिस्सा रहे नीतीश कुमार अब नरेंद्र मोदी को सत्ता से उखाड़ने की कोशिश में जुट गए हैं. देश भर में भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने में नीतीश सबसे अहम कड़ी हैं. वे इस पूरे मुहिम की अगुआई कर रहे हैं. ऐसे में नीतीश कुमार को बीजेपी उन्हीं के घर में घेरना चाहती है ताकि वो बिहार के बाहर ज्यादा फोकस न कर पाएं.

 

चिराग पासवान के पास बिहार में लगभग 6 फीसदी दलित वोट है.2014 और 2019 के चुनाव में एलजेपी ने  बिहार की 6 सीटों पर जीत हासिल की. साथ ही उसने  6-7 सीटों पर बीजेपी की मदद भी की. लोजपा का कोर वोटर पासवान है, जिसकी आबादी 5-6 प्रतिशत है. लोजपा का खगड़िया, मधेपुरा, ‌वैशाली, मधुबनी, बेगूसराय, जमुई और बेतिया में मजबूत जनाधार है.

 

उपेंद्र कुशवाहा अपनी  जाति के बड़े नेता हैं. कुर्मी के साथ कुशवाहा जाति नीतीश कुमार का कोर वोटर माना जाता है. 2014 में उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ थे तब इन्हें 3 प्रतिशत वोट मिला था. समस्तीपुर, बांका, मधुबनी, आरा और रोहतास लोकसभा क्षेत्र में कुशवाहा की पकड़ मानी जाती है.

 

जीतन राम मांझी भी महागठबंधन का साथ छोड़ एनडीए का दामन थाम चुके हैं.जीतन राम मांझी दलित (मुसहर समाज) के नेता हैं. नीतीश कुमार इन्हें 2014 में मुख्यमंत्री बना दिया था.लेकिन  2015 में जब इन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटाया गया तब इन्होंने बगावत कर अपनी पार्टी बना ली.2015 के अपने पहले चुनाव में ही ये 2 प्रतिशत वोट लाने में कामयाब रहे थे. इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में इनकी पार्टी 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. गया लोकसभा क्षेत्र में इनकी पकड़ मानी जाती है.

 

मुकेश सहनी की वीआइपी पार्टी नई है लेकिन कम समय में मल्लाहों ने उन्हें अपना नेता मान लिया है.वो अपने दम पर तो चुनाव नहीं जीत सकते लेकिन उन क्षेत्रों में जहाँ मल्लाह वोटरों की संख्या ज्यादा है, किसी को हरा और जीता सकते हैं.वैसे मल्लाह एनडीए के साथ सहज रहते हैं.मुकेश सहनी का भी एनडीए के साथ जाना लगभग तय है.सीटों की संख्या को लेकर अभी पेंच फंसा हुआ है.वो चिराग पासवान की बराबरी कर रहे हैं.

 

दरअसल, बीजेपी छोटे दलों का समीकरण बनाकर एक साथ कई निशानों को साधने की कोशिश में जुटी हुई है. इन दलों का बीजेपी के साथ होने के बाद महागठबंधन के पास इन्हें दलित विरोधी बताने का मौका नहीं मिलेगा. अगर अगर छोटे दल बीजेपी के साथ आते हैं तो बीजेपी अपने पक्ष में माहौल बनाने या महागठबंधन पर सवाल उठाने और आलोचना करवाने में इन दलों का इस्तेमाल कर सकती है.

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