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11 जुलाई को 11 बजे शिक्षक संघ करेगा प्रदर्शन.

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने किया ऐलान, कहा- शिक्षकों के बीच भेदभाव करती है नियमावली.

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सिटी पोस्ट लाइव :बिहार के शिक्षक आरपार की लड़ाई के मूड में हैं. बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा शिक्षकों की बहाली का  विरोध कर कर रहे शिक्षक संघ का कहना है कि  असंवैधानिक अध्यापक नियुक्ति नियमावली 2023 के प्रतिरोध में 01 मई से सत्याग्रह कार्यक्रम चलाया जा रहा है.सरकार द्वारा बार-बार वार्ता के लिए अनुरोध को ठुकराये जाने के कारण विवश होकर विधान मंडल सत्र आरंभ होने के दूसरे दिन 11 जुलाई को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया है. इस प्रदर्शन में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ, बिहार नगर पंचायत प्रारंभिक शिक्षक संघ एवं परिवर्तनकारी शिक्षक संघों के अतिरिक्त अन्य संगठनों के भी हजारों-हजार की संख्या में भाग लेने शिक्षक 11 जुलाई को 11 बजे पटना पहुँचेंगे. यह प्रदर्शन पूर्णत: शांतिपूर्ण और अहिंसक होगा.

जबतक राज्यकर्मी की दर्जा की घोषणा विधान मंडल के इसी सत्र में सरकार नहीं करेगी तब तक विधान मंडल के सदस्यों के आवास पर उस क्षेत्र के शिक्षक डेरा डालेंगे और उनपर राज्यकर्मी का दर्जा देने पर जोर डालने की आवाज को सदन के अंदर उठाने के लिए नैतिक दबाव डालेंगे.शिक्षक संघ का कहना है कि अध्यापक नियुक्ति नियमावली 2023 की कंडिका-8 में पूर्व से कार्यरत पंचायत एवं नगर निकाय विद्यालयों के शिक्षकों को भी आयोग द्वारा विज्ञापित पदों पर नई नियुक्ति के लिए परीक्षा में बैठने की बाध्यता निर्धारित की गई है. यह भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है. क्योंकि एक ही प्रकार के विद्यालय में एक ही तरह के पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले तीन-तीन वर्गों के शिक्षक बहाल किए जायेंगे. विधि के समक्ष समता का अधिकार यह है कि देश में किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा. यह नियमावली शिक्षकों के बीच भेदभाव करती है.

शिक्षा विभाग ने प्रशासी पदवर्ग के द्वारा मात्र एक लाख अस्सी हजार पदों की स्वीकृति प्राप्त की है, लेकिन विज्ञापन में एक लाख सत्तर हजार ही रिक्तियों को भरने के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए हैं. पूर्व से कार्यरत 04 लाख से अधिक शिक्षकों को भी उन्हीं रिक्तियों के विरूद्ध राज्यकर्मी का दर्जा प्राप्त करने के लिए आयोग की परीक्षा में उतीर्णता की शर्त रखी गई है, जो नैसर्गिक न्याय के विरूद्ध है. अधिकतम 20, 16 और 17 वर्षों तक के भी नियुक्त शिक्षकों को फिर से नई नियुक्ति का अपमानजनक, अन्यायपूर्ण आदेश देना संविधान विरोधी और अराजकतापूर्ण है. यह नियमावली बेरोजगारी बढ़ाने वाली है.

प्रदर्शन कर रहे पूर्व से कार्यरत शिक्षकों पर छंटनी की भी तलवार लटकने वाली है. इस पर तुर्रा यह है कि नीचले तबकों के कर्मचारियों से विद्यालयों के निरीक्षण का दहशत फैलाया जा रहा है, यह निन्दनीय है. विधान मंडल के 100 से भी ज्यादा माननीय सदस्यों ने बिना शर्त राज्यकर्मी का दर्जा देने का लिखित समर्थन किया है और मुख्यमंत्री को भी समर्थन पत्र भेजा जा रहा है. इसके साथ ही साथ पंचायत स्तर से लेकर स्थानीय निकाय और सांसदों ने भी पूर्व से कार्यरत शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने की मांग का समर्थन किया है.

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