जल, जंगल और जमीन वाले झारखण्ड में पानी के लिए हाहाकार.
रांची में बिजली-पानी संकट से मचा हाहाकार, 10 हजार से ज्यादा ट्यूबवेल सूखे, हीट वेव से 12 की मौत.
सिटी पोस्ट लाइव : झारखण्ड में भी इस बार गर्मी ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं. अकेले राजधानी रांची में 10 हजार ट्यूबवेल सूख गए हैं. अगर जल्दी भरपूर बारिश नहीं हुई तो लोगों की प्यास बुझाने वाले डैम-झरने का पानी हफ्ते-दस दिन से अधिक नहीं चल पाएगा. मानसून ने दस्तक तो दे दी है, पर अब भी उतनी बारिश नहीं हो पा रही है, जितने से डैम से पानी की सप्लाई बढ़ाई जा सके. झारखंड के कोयले से तैयार होने वाली बिजली देश भर में जाती है लेकिन झारखंड में 10-15 घंटे से अधिक बिजली नहीं मिल रही. तापमान 40-45 डिग्री के आसपास चल रहा है. एसी-कूलर के अतिरिक्त लोड से ट्रांसफार्मर धू-धू कर जल रहे हैं. बिजली विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 20 दिनों में 120 से अधिक ट्रांसफार्मर जल गए.
गौरतलब है कि झारखंड में वैध-अवैध ढंग से खनिज संपदा तो दूर, पहाड़ों की लूट मची हुई है. हाल ही में झारखंड के संताल परगना क्षेत्र में 1000 करोड़ रुपये के खनन घोटाले का मामला उजागर हुआ था.। पहाड़ तोड़ कर उसकी गिट्टी बेची जा रही है. एनजीटी पहाड़ काटने की अनुमति नहीं देता. जलस्रोत के साधन नदी, झरने और तालाब पर भवन निर्माण और जमीन माफिया काबिज हो गए हैं. रांची शहर के बीच गुजरने वाली हरमू नदी अतिक्रमण कर अवैध भवन निर्माण के कारण नाले में तब्दील हो गई है. स्वर्णरेखा जैसी नदियों के किनारे जमीन माफिया सक्रिय हैं. जमीन बिक रही है, भवन बन रहे हैं. शहरों में कंक्रीट के जंगल उग रहे हैं और इसका खामियाजा पर्यावरण पर पड़ने लगा है.
कभी बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में रांची की पहचान होती थी. बिहार से अलग होने के पहले गर्मी के दिनों में हाईकोर्ट सुनवाई के लिए रांची में काम करता था. 32-35 डिग्री तापमान तक बारिश होनी तय मानी जाती थी. अब तो 45 डिग्री तापमान के बावजूद बारिश का अता-पता नहीं रहता. किसी पहाड़ को बनने में सैकड़ों-हजारों साल लग जाते हैं लेकिन झारखंड के दो दर्जन पहाड़ हवा की तरह गुम हो गए हैं. पत्थर का कारोबार करने वाले माफिया ने तीन दशक में उत्तुंगकाय पहाड़ों को काट कर सपाट कर दिया. पत्थरों की बिक्री कर उन्होंने करोड़ों-अरबों की कमाई की और समतल हुए पहाड़ों के स्थान पर भवन निर्माण के काम शुरू हो गए हैं.
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