संतोष मांझी के इस्तीफे के पीछे का सच .

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार सरकार के मंत्री संतोष सुमन के अनुसार नीतीश कुमार ने उन्हें अल्टीमेटम दे दिया था हम पार्टी के JDU में विलय को लेकर.उन्होंने साफ़ कह दिया था कि अपनी पार्टी का विलय कीजिये या फिर जाइए.उनका कहना है कि अपनी पार्टी को बचाने के लिए मंत्री पद से इस्तिफ देने के सिवाय उनके पास कोई रास्ता नहीं था. सुमन हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. उनके पास पास अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग था.

संतोष सुमन के अनुसार उनके पिता ने पिछले साल राजग छोड़ने और मुख्यमंत्री के प्रति अपनी वफादारी के कारण महागठबंधन में शामिल होने का फैसला किया था, उस वक्त वह पार्टी के अध्यक्ष थे. सुमन ने कहा कि यह मुख्यमंत्री को तय करना है कि हमें महागठबंधन में रखा जाएगा या निष्कासित किया जाएगा. हम उसी के अनुसार निर्णय करेंगे. लेकिन जदयू) के प्रस्ताव को देखते हुए मुझे अपनी पार्टी को विलुप्त होने से बचाने का फैसला लेना पड़ा.बीजेपी  ने इसके तुरंत यह दावा किया कि यह राजनीतिक उथल-पुथल नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की कोशिश को पलीता लगाने के लिए काफी है.

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि जीतन राम मांझी के बेटे का इस्तीफा महागठबंधन में मौजूद खाई का सबूत है. महागठबंधन को लोगों ने खारिज कर दिया है और यह अगले साल लोकसभा चुनाव में स्पष्ट होगा और एक साल बाद विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की हार होगी. महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि जीतन राम मांझी अपने दबाव की राजनीति और चालबाज़ी के लिए जाने जाते हैं. हालांकि हमारी सरकार इस फैसले से प्रभावित नहीं होगी, यह एक ऐसा कदम है जिसका उन्हें पछतावा होगा.

 सुमन  बिहार विधान परिषद की सदस्य हैं, वहीं बिहार विधानसभा में हम के मांझी समेत कुल चार विधायक हैं.प्रदेश के 243 सदस्यीय विधानसभा में सरकार के बने रहने के लिए 122 सदस्यों की आवश्यकता होती है. हम को छोड़ कर महागठबंधन के सदस्यों की संख्या अब भी 160 है. इसमें कांग्रेस और वामपंथी दल भी शामिल हैं. तिवारी ने कहा कि इस साल की शुरुआत में पूर्णिया में महागठबंधन की रैली में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मांझी को गुमराह करने की भाजपा की कोशिशों के बारे में बात की थी. लगता है वह झांसे में आ गये हैं. जदयू) द्वारा विलय के दबाव के दावों में दम नहीं है.

 गौरतलब है कि करीब एक महीने पहले जब मांझी ने राष्ट्रीय राजधानी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. उस समय अटकलों का बाजार गर्म हो गया था. इसके बाद पिता-पुत्र की जोड़ी ने लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लिए पांच सीट की मांग की.खुद संतोष सुमन का कहते हैं-अमित शाह से मुलाक़ात के बाद नीतीश कुमार ने मान लिया था कि हमारी डील बीजेपी के साथ हो गई है.जबकि ऐसा कुछ नहीं था. उन्होंने शर्त रख दी थी कि अगर उनके साथ रहना है तो हम पार्टी का विलय JDU में करना होगा.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पिछले साल अगस्त में भाजपा से अलग होकर राजद के साथ मिल कर सरकार बनाने के बाद से संतोष तीसरे मंत्री हैं जिन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दिया है. इससे पहले विभिन्न कारणों से राजद कोटे से मंत्री कार्तिक मास्टर और सुधाकर सिंह इस्तीफा दे चुके हैं. सुमन के इस्तीफे के बाद नीतीश के विपक्षी एकता के प्रयासों पर धक्का लगने के भाजपा के आरोपों के बाद ऐसी अटकलें हैं कि 23 जून को पटना में प्रस्तावित विपक्षी दलों की बैठक से पहले राज्य मंत्रिमंडल का विस्तार किया जा सकता है, और उसमें दलित समुदाय को समुचित प्रतिनिधित्व दिए जाने की कोशिश की जा सकती है. उल्लेखनीय है कि नीतीश कैबिनेट में जदयू कोटे से वर्तमान में दलित समाज से आने वाले दो मंत्री (भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी और मद्य निषेध विभाग के मंत्री सुनील कुमार) हैं.

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