सिटी पोस्ट लाइव :अगले साल लोक सभा चुनाव है. सभी पार्टियां चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं.देश के जानेमाने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) के संगठन जनसुराज में रविवार को 12 रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी शामिल हो गये. ये परोक्ष रूप से पीके से पहले से जुड़े थे, लेकिन अब उनकी भागीदारी प्रत्यक्ष होगी.पटना की पाटलिपुत्र कॉलोनी स्थित जन सुराज के मुख्यालय में रविवार को आयोजित मिलन समारोह में स्वतंत्रता सेनानी और गांधीवादी नेता लक्ष्मण देव सिंह ने सभी सेवानिवृत अधिकारियों को शॉल ओढ़ाकर और बुके देकर जन सुराज परिवार में शामिल कराया. मुजफ्फरपुर के रहने वाले लक्ष्मण देव सिंह जन सुराज अभियान में प्रशांत किशोर के साथ शुरुआत से जुड़े हैं.
सेवा निवृत भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी जितेंद्र मिश्रा, संत कुमार पासवान, केबी सिंह, उमेश सिंह, अनिल सिंह, शिव कुमार झा, अशोक कुमार सिंह, राकेश कुमार मिश्रा, सीपी किरण, मो. रहमान मोमिन, शंकर झा और दिलीप मिश्रा अब पीके के जन सुराज के सदस्य बन गये. इन सभी का कहना है कि पीके के सोच व सिद्धांत से भविष्य का समाज गढ़ा जा सकता है.इससे पहले, 2 मई को छह रिटायर्ड आईएएस अधिकारी-अजय कुमार द्विवेदी, अरविंद सिंह, ललन यादव, तुलसी हाजरा, सुरेश शर्मा और गोपाल नारायण सिंह आदि जन सुराज में शामिल हो चुके हैं. ये सभी बिहार में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं और अब जन सुराज की नीतियों के निर्माता होंगे.
जन सुराज से जुड्ने के बाद सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी अनिल कुमार ने कहा कि आज कल लोग नेतागिरी के नाम पर स्टंट कर रहे हैं. राजनीति का मतलब करप्शन हो गया है. उन्होंने कहा, मेरा बचपन से ही सपना था कि राजनीति में ऐसे ईमानदार लोग आएं, जो देश के लिए ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाएं. आज कुछ लोग राजनीति परिवारवाद या दल बनाकर कर रहे हैं. जन सुराज के माध्यम से हम उसी सपने को साकार करने के लिए प्रशांत किशोर के साथ जुड़े हैं.
गौरतलब है कि प्रशांत किशोर रिटायर्ड अफसरों को संगठन में शामिल कर ताकतवर चेहरों को सामने लाना चाहते हैं. इसके साथ ही वे यह मैसेज देना चाहते हैं कि उनके संगठन में पढ़े-लिखे लोगों को तरजीह दी जा रही है, क्योंकि प्रशांत किशोर तेजस्वी यादव के कम पढ़े लिखे होने का मजाक उड़ा चुके हैं. उन्होंने हाल ही में कहा था- ’10वीं फेल तेजस्वी अभी शायद सिग्नेचर करना सीख रहे हैं, सीखने के बाद शायद वे 10 लाख नौकरी पर साइन करेंगे.’लेकिन सबसे बड़ा सवाल-क्या बिहार की जनता जाति के बंधन को तोडकर दिल्ली जैसा इतिहास रचेगी.