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शिक्षक बहाली का शिक्षक ही क्यों कर रहे हैं विरोध?

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सिटी पोस्ट लाइव :बिहार सरकार ने नई शिक्षा नियमावली बनाकर लाखों शिक्षकों की बहाली करने का फैसला लिया लिया है.लेकिन सबसे बड़ा सवाल शिक्षक ही बहाली का शिक्षक विरोध क्यों कर रहे हैं.शिक्षकों ने सरकार के फैसले के विरोध में अपना आंदोलन तेज कर दिया है.शिक्षकों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गई तो सरकार को अगले चुनाव में धुल चटा  देगें. गौरतलब है कि पिछले विधान सभा चुनाव में शिक्षकों ने खुलकर तेजस्वी यादव का साथ दिया था.लेकिन शिक्षा नियमावली में बदलाव कर बीपीएससी द्वारा शिक्षकों की नियुक्ति का फैसला लिए जाने के बाद शिक्षक तेजस्वी और नीतीश कुमार को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगे हैं.

 

आंदोलित शिक्षकों का कहना है कि  नियोजित शिक्षकों के लिए आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण करने की शर्त से यह संदेश दिया जा रहा है कि नियोजित  शिक्षक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के योग्य नहीं थे. यह न केवल दो दशकों से कार्यरत शिक्षकों के लिए अपमानजनक है बल्कि सरकार पर भी सवाल उठाने वाला है.शिक्षकों का कहना है कि  जो शिक्षक पिछले दो दशकों से, पहली से पांचवी तक के बच्चों को पढ़ा रहे हैं या जो शिक्षक किसी कक्षा विशेष को किसी खास विषय  पढ़ा रहे हैं उनसे आयोग की परीक्षा में बैठने को कहना उनके लिए ज्यादती है. अगर वे अपने विषय और कक्षाओं के पाठ्यक्रमों को पढ़ाने में दक्ष भी हैं, तब भी इसकी कोई गारंटी नहीं कि वो  आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण हो जायेगें. ऐसे में ये अपमानित महसूस करेंगे.

 

शिक्षकों का कहना है कि आयोग की परीक्षा में जो शिक्षक असफल होंगे, वे गुणवत्ताहीन शिक्षक कहे और समझे जाएंगे. तब भी वे विद्यालयों में अध्यापन कार्य करेंगे. क्या सरकार इन कथित रूप से गुणवत्ताहीन शिक्षकों से बच्चों को पढ़ावाएगी.शिक्षकों का आरोप है कि जब शिक्षकों की कई श्रेणियां हो जाएंगी तो विद्यालय में लोकतंत्र और शैक्षणिक कार्य  प्रभावित होगा. बिहार में शिक्षकों के लिए अलग-अलग नियमावली के कारण विभागीय नियंत्रण और सुचारू प्रक्रियाओं के संचालन में भी काफी कठिनाइयां उत्पन्न होंगी. शिक्षकों का कहना है कि शिक्षकों  को राज्य कर्मी का दर्जा देने की मांग महागठबंधन सरकार के घोषणा-पत्र में शामिल रहा है. अब इसमें आयोग की परीक्षा उत्तीर्णता की शर्त के कारण नियोजित शिक्षकों के मन में सरकार और विभाग के प्रति तीव्र आक्रोश होना स्वभाविक है. उनके निरंतर संघर्ष से शैक्षणिक माहौल पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.

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